SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ दोहा ॥ कीधुं रूपांतर प्रवर, गुटिका तो प्रयोग | सिंहल द्वीपं श्रवियो, पुण्य तो संयोग ॥ १ ॥ नगरमांहे जमतां थकां कला तो सुपसाय ॥ लोक सदु रागी कर्या, गुणथी आदर थाय ॥ २ ॥ गुणवंतानें मानियें, सहुने वल्लन होय ॥ मोतीमां जो गुएा दुवे, तो कंठ घरे सहकोय ॥३॥ शंख शेठ तेथे पुरवरें, एक दिन तेहनें हाट | वीरन बेठो जइ, धरतो मन गहगाट ||४|| शव ताम देखी करी, रूप कला गुणधार ॥ निजघर लेइ आवियो, गौरव की अपार ॥ ५ ॥ ढाल आमी ॥ निंदरमी वेरा हुई रही ॥ ए देशी ॥ सदा सुख पुण्यें पामीयें, पुण्यें लहियें हो श्रादर सनमान ॥ सदा || तेणें पुत्र करीनं मानियो, जूवो जुवो हो पुण्यफल असमान ॥ सदा ॥ १ ॥ पुण्य सघलाही सुखनो दातार || स० ॥ पुण्य गिरुन हो सदुनो आधार ॥ स० ॥ २ ॥ रत्नाकर राजा तिरोपुरे, राजे राजेहो शूरवीर अभंग ॥ ॥ तस पुत्री अनंग सुंदरी, गुणकेरी हो देखी मोह्यो अनंग ॥ स० ॥ ३ ॥ विज्ञान कला गुण चातुरी, सदु जाणेहो लौकिक विचार ॥ स० ॥ आलापे राग मधुरस्वरें, पाम्यो पाम्यो हो यौवन संज्ञार ॥ स० ॥ ४ ॥ वीरन सुली गुण तेहना, जोयेवा हो मनमें यइ चाह ॥ स० ॥ कन्या थर गोली प्रजावथी, जाणे अमरी हो जाणे अधिक सुहाव || स० ॥ ५ ॥ वीरन वराकृति अन्यदा, शंख कन्या हो साथै ते जाय ॥ स० ॥ नृप मंदिर अधिक नन्वादशुं, बेगे अगल हो देखी हर्षित थाय ॥स॥६॥ कुमरी करे वीणा लेइ करी, गायो गायोहो अमृत सम नाद ||सते नाद सुणी रंजी घणुं, पामी पामी हो मन परम प्राब्दाद ॥ स ० ॥ ७ ॥ नृप कन्या रूप निहालीनें, मांहो माहो यह प्रीति अपार ॥स०॥ गौरवशुं राखी निजकन्हे, तुज दरिश हो मुजनें सुखकार ॥॥॥ निशिदिन कुमरी पासेंरहे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy