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॥३॥७॥ अन्य दिवस पापोदय योगें, काया पीमी रोगे रे ॥ रोगनोग अरथीया अघनो, आग कोढ नतपन्नो रे ॥णा ॥ रांकतणीपरे अहनिस पोकारे, घोरे आनंद वधारे रे ॥ रोगे करी सर्वांगें पीमयो, सघली नाव नीमयो रे ॥३०॥ १० ॥ एक निमिष शाता नवि पामे, उस्सह दुख न विसमेरे ॥ रात दिवस इस सरिखा जावे, सयण सहु दुख पावरे ॥३०॥११॥ नारी बत्रीशे दुखसनरी रोती, आंसु करे जिम मोती रे ॥ नरआंसु पाणीसे धोती, पियुमा मुख सामु जोती रे॥
॥ १२॥ वैद्य विद्याविद करे घणार, औषध बुहि घणारे ॥ निफल श्रया सह गुण नाव्यो, alजिम कुपात्र वित्त वाव्यो रे॥३०॥१३॥ पुरवर यद धनंजय नामें, नामें वांगित पामे रे ॥अक्त तेज यवनं परमां, ख्याति घणी यस सरमांरे॥३०॥१४॥ रोग पीमाए कमर पीमागो. मिथ्यातो मुंफागो रे ॥ मनमांहे स्वयमेव विचार्य, यदे हियामां धार्यु रे ॥३०॥१५॥ जो काया Na नीरोगी श्राशे, आमय सघला जाशे रे॥ तो हुँ ताहरी यात्रा ए आविश, अन्न पडे हुं खाश्श रे॥ Ram १६॥ ताहरो महिमा ले जग मोटो, वात नहि ने खोटी रे॥ सेवक वत्सल कहुं शिर नामी, रोग
गयो मुज स्वामी रे ॥ ३० ॥१७॥ तादरि पूजा बहुत प्रकारें, करशुं नन्सव सारे रे ॥ करूं जिनहर्ष विनती तुमने, करो निरोगी मुझने रे ॥ ३० ॥ १७ ॥ सर्वगाया ॥४॥
॥दोहा॥ नोग चमाविश नवनवा, करशुं ताहरी जात ॥आरतियो जोवे नहि, पुण्य पापनी वात ॥१॥ अग्नि सरखी आकरी, वेद खमी न जात ॥ क्रूरव्यथाएं आकलो, मान्यो श्म मिथ्यात ॥२॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ मारी सखी रे साहेली ॥ ए देशी ॥ तिण अवसर तिण नगरी आरामे, मुनीश्वर वंदू नामें रे ॥ गुरु परनपकारी, केवल ज्ञानदिवाकर
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