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________________ Jain Educa ॥ २४ ॥ निजपति संयम आदर्यो, सांगली मनरंगे हो ॥ चारित्र लीधुं यशोमती, जिनहर्ष सुरंगे हो ॥ क० ॥ २५ ॥ सर्वगाथा ॥ ५८ ॥ ॥ दोहा ॥ योगवान राजर्षिए, जण्या अंग अगियार || प्रज्ञा पदानुसारिणी, धरतो विनय विचार ॥ १ ॥ पूर्वनणतां श्रन्यदा, सांजली युं सुविलास ॥ विंशतिधानक तप तयुं, फल एवं गुरुपास ॥ २ ॥ सेवे पद बंदु मानसुं, जिनेादिक वीस ॥ सद्दर्शन मनस्थिर करी, पद पामे जगदीश ॥ ३ ॥ गुरु नपाध्याय शिष्य वली, बाल वृद्ध तपयुक्त ॥ संघग्लान कुलगा विषे, आणी आदर नक्ति ॥ ४ ॥ अन्नपान औषध विविध, वसति वस्त्रासन पात्र ॥ वैयावृत्य शोरुपपदें, करे सदा शुद्ध गात्र ॥ ५ ॥ श्री जिनेंद्र पदवी लहे, अद्भुत प्रौढ प्रकाश ॥ सुरनर असुराधिपतणे, शिर पदकज रज तास ॥ ६ ॥ ॥ ढाल ३ जी ॥ देशी जलालीयानी ॥ वैयावच करवो हवे रे, दशधा फोरवी जोररे ॥ सदामया ॥ अरिहंत भक्ति पूतातमारे, ग्रह्यो निग्रह घोर रे || || वैयाव० ||१|| रायऋषीश जगीशसुं रे, करे वैयावच विशुः इरे ॥ स० ॥ बालग्लानादिक साधनो रे, गुरुनो विशेष सुबुइरे ॥ स० ॥ वै ॥ २ ॥ ई५ प्रशंसा अन्यदा रे, कीधी सना मोझार रे ॥ स० ॥ वचन सुणी चित्त चमकियोरे, सोम लोकपाल तिवार रे || स० ॥ वै ॥ ३ ॥ नू आव्यो ते देवतारे, करवा परीक्षा तासरे ॥ स० ॥ रुप की युं ग्लान साधुनुं रे, कृश दाहज्वरसास रे ॥ स० ॥ वै० ॥ ४ ॥ वसती मांहे ते राखीयो रे, बीजुं करी मुनि रूप रे ॥ ॥ मुनिवर जिहां करे गोचरी रे, तिहां गयो जोएवा स्वरूप रे ॥ स० ॥ वै० ॥ ५ ॥ नृकुटी शीष चावीने रे, | बोले वचन कठोर रे ॥ स० ॥ रे कपटी मायावी या रे, रे जिनशासन चोर रे ॥ स० ॥ वै० ॥ ६ ॥ mnational For Personal and Private Use Only DDDDDDDDDD dary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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