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नूततणी परें बोलतो रे, मुख बूटे दीये गाल रे ॥स ॥जेहने रीश न नपजे रे, तेहने पण चढे
काल रे ॥ स ॥ वै॥७॥नानुश्रेष्ठीने घरे गयो रे, मुनिवर सुगुण निरीह रे ॥ स ॥ सनोजन १०॥
गुरु कारणे रे, लेवा नणी अबीह रे ॥ स ॥ वै॥७॥ देखी राजऋषि प्रतें रे, तीखे वचन तामरे ॥सणा नालासरीखे आकरे रे, क्रोध नपावण काम रे ॥ सणावै ॥ ॥पण मुनिवर कोपे नहीं रे, IN समता सागर साध रे ॥ स ॥ तेहने वचने आवीयो रे, वसती धरतो समाध रे ॥ स ॥वै ॥१॥ वैयावच ग्लाननो रे, गुरु करे एहवी वाण रे॥ स ॥ वैद्य तेमी देखामीयो रे, जेह चिकित्सह जाण रे ॥स ॥ वै॥ ११ ॥ ज्वरोपशांति नणी कह्यो रे, पाकां फल सहकार रे ॥स०॥ तेहा
रस मरिचा जिसो रे, आणी द्यो सुखकार रे ॥ स ॥ वै ॥ १२॥ गुरु आदेशे मुनिवरु रे, ते | Iral आणेवा काज रे॥ स०॥ पुरमें नमे घरे घरे रे, शेठ मंत्री नर राज रे॥ स ॥ वैण् ॥ १३ ॥ sal
पण क्यांही पाम्या नहीं रे, देवतणे अनुन्नाव रे ॥ स ॥ विधिसुं श्म जातां थकां रे, सघलेही मुनिरायरे ।। स ॥ वै ॥ १५ ॥ करी ग्लानमायामुनि रे, कोपाटोप कराल रे ॥ स० ॥ मुख
॥१५॥ कर। राजऋषिनी तर्जना रे. दुसह दुर्वचनेह रे ॥ स ॥ प्रणमे चरण कमल मुदा रे, ग्लानतणा मुनि तेह रे ॥सण ॥ वैNal NElu १६ ॥ अमृत शीतल वयणडे रे, क्रोध गमे मुनिराय रे ॥स ॥ न थयो वैयावच तुम तणो रे, NE salमुज पोतो अंतराय रे ॥स ॥वै ॥ १७ ॥ अवधिज्ञान प्रयुजीने रे, जोवे सुर मन नावरे॥
स॥ कंचन सरीखोए सहीरे, सहे बेदन ताव धाव रे॥स॥वै ॥ १७ ॥ प्रगट थयो दुष्टातमाशा रे, कर जोमी लोकपाल रे॥सा वचन कहे राजर्षिने रे, चरणे लगावी नाल रे॥सणावै॥१॥ तुं सहु ऋषिसिर सेहरोरे, तुं महोटो अणगार रे ॥ स ॥ तुजसरीखो कोइ नही रे, तुं समता
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