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________________ नंमार रे ॥ स ॥ वै॥२०॥ तुजगुण स्तुति इंडेकरीरे, ते साची थर आज रे ॥ स ॥ कीधी परीक्षा ताहरी रे, माया करी मुनिराज रे॥ स ॥ वै॥१॥ पंमित तो ने सो गमे रे, तपसी पण हो अनेक रे ॥ स ॥ ग्लानतणो वेयावची रे, तुज सरीखो तुं एक रे ॥ स ॥ वै ॥२॥ निक्ति करे जे ग्लाननी रे, नक्त पानौषध आत्म रे ॥ स ॥ नक्ति कीधी तेणे माहरी रे, तीर्थंकर कहे वाण रे ॥स ॥ वै॥ २३ ॥ देव माया दूरे करी रे, प्रणमी गुरु मुनि पाय रे ॥ स ॥ देव । valखमावीने गयो रे, देव मन हर्ष न माय रे ॥ स॥ वै॥२४॥ दशपदनं वेयावच करी रे, अज्य तीर्थंकर कर्म रे ॥स॥ आराध्यो संयम नलो रे, तत्पर वैयावृत धर्म रे ॥ स ॥ वै ॥ २५ ॥ करी अणसण आराधना रे, मुनि श्रया सुर विजयंत रे ॥ स ॥ जीमूत ऋषि तिहांथी चवी रे, श्रीकठ विजय महंत रे॥ स ॥ वै ॥ २६ ॥ श्राशे जगपति जिनवरु रे, सुरपति नमशे पाय रे ॥ सण ॥ समवसरणमें परषदा रे, बारह मीलशे आय रे ॥ स ॥ वै॥ ३७॥ यशोमती पण संयती रे, चारित्र निरतीचार रे ॥ स॥ तिहांहिज देव अश् चवी रे, याशे प्रन्नु गणधार रे ॥स ॥ वै ॥२॥ जीमूतकेतु व्रत सांजली रे, जिनवर कर्म निबंध रे ॥ स ॥ यत्न करे वेयावच विषे रे, कहे जिनहर्ष प्रबंध रे ॥ स ॥ वै ॥ श्ए ॥ सर्वगाथा ॥ ए३ ॥ ॥ इतिषोमश स्थाने वैयावचकरणे जीमूतकेतुकथानकम् ॥ ॥दोहा॥ अथ सतरमुं थानक हवे, कहियें तास स्वरूप ॥ तत्र सकल गुण रत्ननिधि, जगमोहनी अद्भुत १॥श्रीजिनोक्त वय यक्त अति. चनविह धर्माराधिनक्ति सहित श्रीसंघने. नुपजावी समाधि solu॥जे निराश संसारथी, तीर्थ कहीजें जास ॥ जे सरिखो बीजो नहि, जिनवरवदे उल्लास॥३॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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