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________________ स्थान वीश जेहथि शुनफल शाश्वतुं, गुण जेतणा अनंत ॥ पूजा अर्ची नावसुं, ते श्रीसंघ महंत ॥४॥ देव नहि जिनसारिखो, पद नहि मुक्ति समान ॥ क्षेत्र न को संघ सारिखं, त्रिभुवनमांहि प्रधान ॥१०॥ व्यथकी ने नावथी, नाखी विविध समाधि ॥ नवियणने हितकारणे, जिनवर गुणे अगाध ॥६॥ Hal दुखिया दीना जीवने, मनवांबित दाणेद ॥ नपजावियें संतोष जे, व्यसमाधि तेह ॥ ७ ॥ सारण वारण चोयण, देश थिर थापेह ॥ जे ज्ञानादिक गुणविषे, नावसमाधि तेह ॥ ७ ॥दुखना पीड्या तप करे, यथा तथा पण नीच ॥ पर समाधिविषे धरे, ते गिरुवा जग जीव ।। ए ॥ जगपूजित श्रीसंघने, वे समाधि करे जेह ॥ लहे पुरंदरनी परे, तीर्थकरपद तेह ॥ १० ॥ ॥ ढाल ली। प्रादुणमानी गीतनी ॥ए देशी। | सांभलजो रे पुरि वणारसी प्रौढ, विजय ऋद्धि विराजती ॥ सांग ॥ विजयसेन नूपाल, तेहनी कीर्ति राजती ॥ सां ॥१॥ पद्ममालाऽद्भुत वास, धर्मतणी मति अति घणी॥ सां पद्ममाला अन्निधान, पटराणी राजातणी॥ सांग ॥२॥लोग पुरंदर राय, मधुकर मोह्यो । मालती, ॥ सांग ॥ मालती कुसुम समान, बीजी राणी मालती॥ सां० ॥३॥ पद्ममालानो रे पुत्र, कुमर पुरंदर दीपतो ॥ सांग ॥ रुप पुरंदर जास, रतिपतिने पण जीपतो ॥ सां॥msal नारी हृदय नन्माद, नपावण यौवन चमयो।सांणासकल कलानो जाण, विधिना निजहाथें घमयोusa सांग ॥ ५ ॥ क्रीमा करण कुमार, वन संचरियो एकदा, ॥ सांग ॥ वनवासि एक साधु, देखी चरण नम्यो मुदा, सांग ॥ ६॥ आगल बेगे आय, मुनि आपे रे देशना सां० ।। मीठी अमिय समान, NIसुणतां सुख लहियें घणां । सांग ॥ ७॥ एहज धर्मनुं बीज, धर्म कनक ए कसवटी ॥सां ॥ Salदुक्कर एही जास, परस्त्रीथी मन साहटी। सां॥७॥ धन्य तिके नरनारि, रूप निहाली शोन्नता ०३॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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