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________________ वश ए XXXXXX साहमो, रूपमद देपण संधिरे ॥ काममद नारी दर्शित दुवे, विजवमद एह जात्यंध रे ॥ जाण ॥ ८ ॥ शोक संग्रस्त चैतन्यता, हृदयथी जाय विवेक रे ॥ धन थोडे गये रांक ज्युं, रुदन ते करे अनेक रे ॥ मा० ॥ ए ॥ मोहराजाना भटथकी, तुरत मुकावे नर तेह रे || शरण करी जिनवरतणुं, दुस्तप | तप तपे जेह रे ॥ १० ॥ इष्ट गये सुख भ्रष्ट थये, कष्ट आवे निकट जोय रे ॥ श्रमूढ मनयुक्त समता नरया, वैराग्यानरण तप होय रे ॥ भा० ॥ ११ ॥ एहवी देशना गुरुतली, सांजली मोहश्री जीत |रे ॥ राय विरतो जवनोगथी, ज्ञानितणी एह रीत रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ राज्य देश निज पुत्रने, नृप गृह्यो संयम भार रे ॥ राजऋषि जोइ टाले सहु, चारित्रना अतिचार रे ॥ जा० ॥ १३ ॥ वादशांगी जणी उत्साहथी, सौम्य शीतल सुविनीत रे । समिति गुप्ति शुद्ध सांचवे, परम गुरु नपरे प्रति | रे ॥ जाणं ॥ १४ ॥ एकदिन देशनामें चाल्यो, वीश स्थानक अधिकार रे ॥ मुनि हरिवाहन सांजल्यो, पाम्यो दर्ष अपार रे, जा० ॥ १५ ॥ अन्न पाणी निज आणिने, मनश्री नक्ति धरि राग | रे | उत्तम मुनि गुणवंतने, साधु करे संविभाग रे जा० ॥ १६ ॥ ते लहे जिनतणी संपदा, तृतीय भव संयमी होय रे ॥ मुक्तितणां सुख भोगवे, जन्ममरणतणां दुःख खोयरे ॥ जा० ॥ १७ ॥ गुरुवचन एहवां सांजली, राजऋषि अभिग्रह लीध रे ॥ अन्नपानादिक सदु साधने, करूं संविभाग गुणनीध रे ॥ जा० ॥ १८ ॥ श्रहार करेवो पढे सही, नगरयो जे न ब्ये कोय रे ॥ जे संविभाग करे नहि तेहने सिद्धि न होय रे ॥ जा० ॥ १९ ॥ साधु निक्षा जे ये साधुने, देइ बहु आदरमान रे ॥ दान सदुमांदे अधिकं कह्यं, धर्मतयूं सुखदान रे ॥ जा० ॥ २० ॥ गढवासी मुनि जे होवे, जे करे नहि संविनागरे ॥ तेह नदरज्जर जिन कह्या, कदे जिनदर्ष महानागरे ॥ जा० ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ||५|| For Personal and Private Use Only Jain Educationa International स्थान० एमा www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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