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________________ मृत थयेरे खिन्न ॥ च ॥ तिम ए सुख संसारतणां सहु, सुणी जिनहर्ष महाजन ॥ चण baln २१॥ न ॥ सर्वगाथ ॥ ३ ॥ ॥दोहा॥ नृप अवसर पामी कहे, नगवन् करो प्रसाद ॥ शेठ धनेश्वरने घरे, किम यो विषाद ॥१॥ गुरु नांखे राजें सुण, पूर्व कर्म फल तेह ।। सघला प्राणी नोगवे, मोहचढे मन जेह ॥२॥ शेठे णे नव पागले, धर्मार्थ धन त्याग ॥ जीव घणा संतापिया, तहेनां फल महानाग ॥३॥त्रण सुन्नट मोहनृपतिना, मिथ्यात्व मान शोकाख्य ॥ पीझ्या सघला प्राणीया, मदोन्मत्त परित्नाष्य sany॥ मुंगाणा मिथ्यात्वमें, कृत्याकृत्य अजाण ॥ पशु नपल तरु श्रेणीने, माने करी प्रमाण॥५॥ ॥ ढाल जी ॥ हंगर जले दीगे में शत्रुजातणो ॥ ए देशी ॥ al ॥ नावावर्ते मोहित आतमां, मिथ्यादर्शन मंत्री तेणेरे ॥ देवगुरुधर्म शुश्तत्वथी, थाये पराङ्: Salमुख जेणे रे ॥ ना० ॥ १॥ रोगविष रिपु हणे दुःख नणी, जगमांहे एकवार रे ॥ पण जन्म सहस्र मिथ्यात्व ए, आपे दुःख अपार रे ॥ ना ॥ २ ॥शंकर ब्रह्मा हरि देवता, सर्वज्ञ हीन नीरागरे ॥ निश्चय प्राकृत मनुष्यश्री, असमंजस वृत्ति सरागरे ॥ ना० ॥ ३॥ निशदिन नारी पासे रहे, लोकतणी नहि लाज रे ॥ तेहने देव करी नमे, देव मिथ्यात्व महाराजरे ॥ ना ॥ ४ ॥ ब्रह्मवत जे पाले नहि, करे षटकाय आरंन्न रे ॥ मूढ ते माने गुरु करि, तरवा नवसमुश असंन्नरे ॥ ना ॥५॥ ५ ॥ धर्म सारंभ जिहां देख तो, रात्रि नोजन नहि त्याग रे ॥ लक्ष्य अन्नदय जाणे नहि, दुर्गति जाएवा मागरे ॥ना ॥६॥ रंक माणस पण निजन्नणी, मान पूस्यो महामृढ रे ॥ नूपथकी अधिक लेखवे, मेले नहि निजरूढ रे ॥ना ॥ ७ ॥ शौर्य मद षे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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