SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीश ॥८३॥ | पंचियाण पर्यंती | महिलाए दियमग्गो, तिनवि लोए नही संति ॥ २ ॥ विरतिवि सवेल समाली, राती अमृत सही नाणी, जिनहर्ष कहे ए वाली रे ॥ गु० ॥ १२ ॥ सर्वगाथा ॥ ८४ ॥ ॥ दोहा ॥ गोते काशीपुर, विद्युल्लता गृह प्राप ॥ कामण कारण जोयजो, जेथी वधे संताप ॥ १ ॥ तेकेमे बानो मदन, कातुक जोवण काम || घर बाहिर आवी लीयो, विजन गम विश्राम ॥ २ ॥ शुं करशे ए मेषने, विद्युल्लता मुज नारि ॥ मनमें अचरिज पामतो, जोवे नयण पसारि ॥ ३ ॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ कालडां घमीदे रे । ए देशी ॥ विद्युलता घरे वियो, देखी तत्क्षण मेष ॥ श्रांनासु इढ बांधियो हो, प्राणी क्रोध विशेष ॥ चतुरनर सुपा लेरे, सुणले रे नारी वात ॥ चतुर० ॥ श्रधम नारीनी जात ॥ च० ॥ १ ॥ यष्टि मुष्टि निर्दयपणे, मारे पापणी तेह || बरका पाने बोकडोहो, वारी ए लोक मिलेह ॥ ० ॥ २ ॥ मुखें वचन एहवुं कहे, खाशे जेह करंब || बीजो पण एहेनीज परें रे, लदेशे ए घणी वीडंब ॥ च० ॥ ॥ ३ ॥ मारी नृपशांता थइ, वाचा सांगली तास ॥ मंत्र वादीयें मूलगो हो, कीधो रूप प्रकाश ॥ च० ॥ ४ ॥ लोकें तापस पूढीयो, एहशुं ताहरु रुप | मांडीने सघलुं कर्तुं हो, पोतातणुं स्वरूप ॥ ॥ च० ॥ ५ ॥ नयें प्रांत मनमां थयो, चिंते चित्तमां एम ॥ बेथी अधीकी ए घणी हो, कहो हवे कीजें केम ॥ च० ॥ ६ ॥ घरनो दाऊयो नीकल्यो, निगुणी बोमी नारि ॥ तेहथी चढती एहे मीली हो, किहां जश्एं किरतार ॥ च० ॥ ७ ॥ घरे जानं तो ते हणे, इहां तो मारे एह ॥ वाघ नदी विचमें पडयो हो, केम नगारुं देह ॥ ० ॥ ८ ॥ राक्षसी परें तेहने, बोमी चाल्यो ताम । केटलाक दीवसें गयो हो, नगरी हसंती नाम ॥ च० ॥ एए ॥ तिहां श्री ऋषन जिणंदनो, चैत्य मनोहर चंग ॥ चंद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान० ॥८३॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy