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वीश
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| पंचियाण पर्यंती | महिलाए दियमग्गो, तिनवि लोए नही संति ॥ २ ॥ विरतिवि सवेल समाली, राती अमृत सही नाणी, जिनहर्ष कहे ए वाली रे ॥ गु० ॥ १२ ॥ सर्वगाथा ॥ ८४ ॥
॥ दोहा ॥
गोते काशीपुर, विद्युल्लता गृह प्राप ॥ कामण कारण जोयजो, जेथी वधे संताप ॥ १ ॥ तेकेमे बानो मदन, कातुक जोवण काम || घर बाहिर आवी लीयो, विजन गम विश्राम ॥ २ ॥ शुं करशे ए मेषने, विद्युल्लता मुज नारि ॥ मनमें अचरिज पामतो, जोवे नयण पसारि ॥ ३ ॥ ॥ ढाल ४ थी ॥ कालडां घमीदे रे । ए देशी ॥
विद्युलता घरे वियो, देखी तत्क्षण मेष ॥ श्रांनासु इढ बांधियो हो, प्राणी क्रोध विशेष ॥ चतुरनर सुपा लेरे, सुणले रे नारी वात ॥ चतुर० ॥ श्रधम नारीनी जात ॥ च० ॥ १ ॥ यष्टि मुष्टि निर्दयपणे, मारे पापणी तेह || बरका पाने बोकडोहो, वारी ए लोक मिलेह ॥ ० ॥ २ ॥ मुखें वचन एहवुं कहे, खाशे जेह करंब || बीजो पण एहेनीज परें रे, लदेशे ए घणी वीडंब ॥ च० ॥ ॥ ३ ॥ मारी नृपशांता थइ, वाचा सांगली तास ॥ मंत्र वादीयें मूलगो हो, कीधो रूप प्रकाश ॥ च० ॥ ४ ॥ लोकें तापस पूढीयो, एहशुं ताहरु रुप | मांडीने सघलुं कर्तुं हो, पोतातणुं स्वरूप ॥ ॥ च० ॥ ५ ॥ नयें प्रांत मनमां थयो, चिंते चित्तमां एम ॥ बेथी अधीकी ए घणी हो, कहो हवे कीजें केम ॥ च० ॥ ६ ॥ घरनो दाऊयो नीकल्यो, निगुणी बोमी नारि ॥ तेहथी चढती एहे मीली हो, किहां जश्एं किरतार ॥ च० ॥ ७ ॥ घरे जानं तो ते हणे, इहां तो मारे एह ॥ वाघ नदी विचमें पडयो हो, केम नगारुं देह ॥ ० ॥ ८ ॥ राक्षसी परें तेहने, बोमी चाल्यो ताम । केटलाक दीवसें गयो हो, नगरी हसंती नाम ॥ च० ॥ एए ॥ तिहां श्री ऋषन जिणंदनो, चैत्य मनोहर चंग ॥ चंद
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स्थान०
॥८३॥
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