________________
किरण सम नजलो हो, जाणे हेमगिरिंद ॥ च॥ १० ॥ अरिहंतनी प्रतिमा नमी, पाम्यो परमानंद ॥ तिहां आव्यो जिन पूजवा हो, धनदेव शेठ अमंद ॥चण॥ ११ ॥ मदनन्नणी पुर्बु तिणे, भांख्यो
सहु विरतंत ॥ कहे धनदेव इहां कीस्युं हो, कौतुक तुज गुणवंत ॥ च ॥१२॥ श्राये कुटील कुलNalawी, प्राये नारी जात, कपट घणुं साहस घणुं हो, एहनी अवली धात ॥ च॥ १३ ॥ सांजल INEIतुज आगल कहुँ, महारा घरनी वात ॥ ताप समं जिम ताहरो हो, शीतल पाये गात ॥ च ॥१m stil
धनपति श्हां व्यवहारीयो, सुकृतनो नंडार ॥ धनी सहुमांहे शिरें हो, नपकारी दातार ॥चण॥१५॥ Pal पुत्र तेहने बेथया, धनसारने धनदेव ॥ अनुक्रमें धनपति शेठीयो हो, काल करी थयो देव ॥च॥१६॥
धन पण ते साथे गयु, स्नेहीनी परेंताम।नाग्यविना धन नवि रहे हो, धनविण न वधेमाम ॥चण॥१७॥ Saबे नाइ जूदा श्रया, धनविण न रहे नेह ॥ कलह सदाघरमें दुवे हो, शोना जाये देह ॥ च॥१॥ Balस्त्रीनपर बीजी वली, स्त्री परण्यो धनदेव ॥ शोक्य परस्परें प्रीतडीहो, अति वधती नित्यमेव ॥
च॥१॥ नर्ता मनमां चिंतवे, अचरिज दीसे एह ॥ वेर शोक्यमांहे हुवे हो, तिहां तो न Sal दुवे सनेह ॥मणाश्णा बे नारी श्रीमंतनी, तिहां पण वढे अपार ॥ वढे नव अचरिज इहां कीश्युं sd
हो, निर्धन घरनी नारि ॥ च ॥ २१॥ मांहोमांहि एहने, दीसे प्रीति अपार ॥ तो जो गनो रही हो, शहां कोई विचार ॥ च ॥ २२॥ देह अपायननेमिशें, कपट करी तिणीवार ॥ वहेलो सुतो घरें जश् हो, कहे जिनहर्ष विचार ॥ च ॥ २३॥ सर्वगाथा ॥ १० ॥
॥दोहा॥ दृढवस्त्र वृतमुखकमल, कपट निंद करी शेठ ॥ सूतो घोरावे घj, नारी दी ३ ॥१॥ नांखे दयिता आदिमा, बहिनी पाओ सज्ज ॥ ढील मकर संप्रति तिहा, आपण जश्एं अज ॥२॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org