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________________ वीश० ॥१॥ *त्रत्रमा जोजन करे सुकुमाल ॥ प्र॥ ५ ॥ कालें कालें रे जे किरिया करे रे, बोमी अंग प्रमाद || सुविहित साधु ती सामाचारीरे, पाले न करे विवाद ॥ प्र० ॥ ६ ॥ साधु साधवी एहवा ते जणी रे, कल्पकालोचित जाण ॥ न्यायागत अशनादि वशभली रे, वस्त्र पात्र परिमाण ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इत्यादिक आपे बहु जावशुं रे, धर्मतणो प्रवद्वं ॥ श्री जिनशासन तणी प्रभावनारे, करे तजी मनदंन ॥ प्र० ॥ ॥ श्रीजिनगृह जिन प्रतिमा कारवेरे, बिंब प्रतिष्ठारे सार । तीर्थतली यात्रा विधिशुं करे रे, खरचे व्य | अपार ॥ प्रा||आचार्यादिक पदनुत्सव करेरे, करे पुण्यनां रे काज ॥ न्यायोपार्जित निज संपति करी रे, वली श्रावक शिरताज ॥ प्रण१णागुण एकवीशे रे करी विराजतारे, पाले जे व्रत वार ॥ सामायिक पोसह विधिशुं करी रे, पक्किमणुं दोयवार ॥ प्र० ॥ ११ ॥ नियम संज्ञारे रे चन्द चतुरपणेरे, जीवादिकना रे जाण ॥ जाणे अर्थ सहु आगम तणारे, पाले जिनवर प्रा ॥ प्र०॥१२॥ानक्तिकरे एहवा श्रावकतणी रे, ||देइने बहुमान ॥ जोजन पेरे मीगं जावतांरे, आपे वस्त्र प्रधान ॥ प्र० ॥ १३ ॥ चंदन कुसुमादिक पूजा करेरे, आपे सरस तंबोल || साहमीवत्सल बहुजांते करेरे, राखे एम रंगरोल ॥ प्र० ॥ १४ ॥ सीदाता देखी साहमी जणी रे, करे सहाय नृपगार सादमी सगपण धर्मविना नहीरे, जाणे | श्म निरधार ॥ प्र० ॥ १५ ॥ धर्मथकी मगताने थिरकरिरे, थापे धर्मनी राह ॥ विनयकरे धर्मों गुएावंतनोरे, वलीथाये गुण ग्राह ॥ प्र० ॥ १६ ॥ अनुमोदे नत्तमना गुणनलीरे, करे वैयावच तास ॥ | साहमीनां मनरंजे जगतिशुं रे, करे जिनहर्ष प्रकाश ॥ प्र० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा जाप जपे शुद्ध भावभुं नमः श्रीप्रवचनाय ॥ ईणी पदस्थ ध्यानें करी, आतम निर्मल श्राय ॥ १ ॥ तन्मय आत्मा थइकरी, घ्यावे निरंतर जेह ॥ ते सुरंगति सुख अनुभवी, अनुक्रमें मुगति लहेह ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान० 11201 www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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