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________________ अरिहंत दर्शन सारिर्खु, प्रवचन संघस्वरूप ॥ पंमितनर जाणे इशुं, आणी बुद्धि अनूप ॥ ३ ॥ तत्र बृद्ध शिशु ग्लाननी, शिष्य तपस्वी साध ॥ कटप्यवस्तुशुं अनुदिनें, करे सुनक्ति अगाध ॥ ४ ॥ साधु करे अथवा गृही, तीर्थकर श्रिकाम ॥ ते त्रीजेनव जोगवी, लहे अजरामर गम ॥ ५ ॥ ढाल बीजी ॥ ढाल नींबश्यानी देशी ॥ खेत्र रतमां प्रति दीपतूं, पुर वसंतपुर नामोजी ॥ वसंत तणीपरें शोना जेहनी, जेम शोहे प्रारामोजी ॥ खे० ॥ १ ॥ अरियण साधी रे वशें किया जेणे, तेज प्रताप दिलंदोजी ॥ जय टाले पाले निज प्रज जली, अवनिपति अरविंदोजी ॥ खेत्र || २ || एक दिवसे तगेपुर व्यवहारियो, नाम तास जिनदासोजी ॥ समकित धारी रे जे पूतात्मा, लखमी तणो निवासाजी ॥ खे० ॥ ३ ॥ राजा माने रे जेहने प्रतिघणो, धर्मीमां सिरदारोजी ॥ दीन दुखीनं रे जे उपगारियो, पुरमा जस विस्तारोजी ॥ खे० ॥ ४ ॥ जिनदासी जिनदासी तसु प्रिया, गुणपण तेहवा नासेजी || शीलवती गुणवंती कामिनी, विलसे विषय विलासोजी ॥ खे० ॥ ५ ॥ परमविवेकी रे चित्तविनयी नयी, सुत तेहनो जिनदत्तोजी ॥ अद्भुत सुरति रे रूप सोहामणो, यौवन वय मय मत्तोजी ॥ खे० ॥ ६ ॥ चंशतप विद्याधर अधिपशुं, मित्राइ थइ तासोजी || विद्या ते दीधी बहु रूपिणी, रहे हो निसि पासोजी || खे० ॥ ७॥ किाइक अवसर मित्र बहु मली, गया नद्यानें तेहोजी नाटक तिहां कराव्युं रंगशुं, जोवे परम सनेहोजी ॥ खे ॥ ८ ॥ एकनर तिहां प्रवीने ननो, चित्रपट हाथे लेइजी ॥ जिनदत्तेदी गे चित्राम ते वचन कहे हित देश्जी ॥ खे० ॥ एए ॥ चित्रदेखी मुज हयरुं नलसे, सीतल नया वरंतोजी ॥ चंचल मनमें व्यापे मोहनी, सांजल तुं गुणवंतोजी खे० ॥ १० ॥ रूप अनोपम ए कहे केहनुं, फूलित यौवन जासोजी ॥ नरी सुरी हि कुमरी Jain Educaransemnational For Personal and Private Use Only DDDDDDDD www.nary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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