SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंदिर व्यसन निवासनुं, कज्जल कुल श्याम ॥ परनारी संग बोकीयें, जेअपजसनुं गम ॥ सो० ११ राजा वारे अन्यनें, जो करे अन्याय ॥ राजा नीति चाले नहीं, कोने कही यँ जाय || सो० ॥ १२ ॥ रूप श्रयुं तो शुं थयुं, पण ज्ञाति सोपाक || मीगं सुंदर दीसतां, पण विष किंपाक ॥ सो० ॥ १३ ॥ संग इसो ए नारिनो, जेहवो कौंचनो संग ॥ इह परभव दुःख पामियें, अपवित्र दुवे अंग ॥ सो० १४ ॥ तोपण कामदवालिए, तपियुं नृप मन्न ॥ वचनजलें बांटयुं घणुं, टाहाडुं न श्रयुं तन्न || सो० ॥ १५ ॥ राज्यातली अधिष्ठायिका, समरी मंत्रीस ॥ देवीयें रोगें रायनें, पीमयो निसिदीस ॥ सो० ॥ १६ ॥ तेरो रोगें पीड्यो को, नृप करे विलाप ॥ तापें जिम जख टलवले, मातुं जाएयुं पाप || सो० ॥ १७ ॥ राजा विरम्यो पापथी, जाएयो मंत्री जाम || देखी कीधो रायनें, निरोगी वली ताम ॥ सो० ॥१८॥ राजा चिंते मन तणुं, लागुं मुज पाप ॥ कहे जिनदर्ष फिरी फिरी, करे पश्चात्ताप ॥सो गाणा ॥ दोहा ॥ धान, पापापम् नृपाय ॥ श्रुत शील सलीलसुं, सांजल श्रीमहाराय ॥ १ ॥ लोक कहे लौकी कमें, जलनां तीर्थ अनेक | काय शुद्ध श्राये तहीं, स्नान कीयां अविवेक ॥ २ ॥ अंतर्गतनां पाप जे, जलधोयां नवि जाय ॥ सुरानांगणी परें, प्रशुचि जावे न राय ॥ ३ ॥ तथापि पंमित पांचशे, पूबेवा परजात ॥ श्रात्म पाप उतारवा, निर्मल करवा गात ॥ ४ ॥ प्रात समे तेम | वीया, पंकित सना मोकार ॥ पाप मुक्ति पूढे नृपति, ते बोल्या तेशिवार ॥ ५ ॥ ढाल बीजी ॥ वात न काढो हो व्रततणी ॥ ए देशी ॥ राय सुलोपंति कहे, गंगाजलमां न्हायें रे ॥ गंगानुं पाणी पीयें, पातक दूर पलाये रे ॥ राय० ॥ १ ॥ वेद पुराण सुगो कथा, अग्निहोम जो कीजें रे || शास्त्रोदित दानें करी, पातक दूर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only COOOOOOD www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy