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सूत्रार्थ प्रधीत जे, बहुश्रुतते सुविवेक ॥ द्वादशांग दश पूर्वधर, आदिक जेद अनेक ॥ ६ ॥ तेहनी नक्ति करे जली, वस्त्र पात्र अन्न पान ॥ यथा उचित दानें करी, पोषे देइ मान ॥ ७ ॥ रामो नवद्यायाणं तथा, रामो चनद्दस पुवीण ॥ ए पदनो गुणलो करे, दोय सहस्र प्रवीण ॥ ८ ॥ विधिवंदन विश्रामणा, आपे बहु सनमान ॥ नामकर्मोदय तीर्थकर, थाये नृदय प्रधान ॥ ए ॥ भक्ति करे बहुश्रुत तणी, जली वस्तुशुं जेह ॥ महेंद्रपाल नृपनी परें, जिनपद पामे तेह ॥ १० ॥
ढाल पहेली ॥ ते मुज मित्रामि डुक्करुं ॥ एदेशी ॥ अथवा ॥ हवे राणी पद्मावती ॥ देश ॥
सोपारक पाटण नलुं, इणी जरत मोकार || महेंइपाल राजा तिहां, बहुविद्या आधार॥ सो॥१॥ मिथ्यात्वी दर्शन तथा नृप जणी या ग्रंथ । विनयी गुरु सेवा करे, चाले तेहनें पंथ ॥ | सो० ॥२॥ कला कुशलपण तेहवो, तेहनो परिवार ॥ राय जिसो परजा तिसी, लोकोक्ति विचार ॥ सो० ॥ ३ ॥ सद्गरु योग अनावश्री, माने मिध्यात् ॥ पंचनूतथी नृपजे, आतम ए वात ॥ सो॥४॥ यतः॥ विना गुरुन्यो गुण नीर - धिन्यो, जानाति धर्म न विचक्षण । पि ॥ आकर्ण दीर्घोज्वललोचनोपि, दीपं विना पश्यति नांधकारे ॥ १ ॥ | पूर्वढाल || वाचाथी वाचस्पति, सरिखो परधान ॥ जिनधर्मी पूतातमा, नृपनुं बहुमान ॥ सो० ॥५॥ तास सहोदर शुनमति, नामे श्रुतशील ॥ प्राणथकी पण वालहो, नृपर्ने सुखसलील || सो० ॥ ६ ॥ गान करंती एकदा, मातंगीनी नार ॥ कानें कुंरुल कनकना, दामिनी चमकार || सो० ॥७ ॥ मुख पंकज पंजक इसे, रूपें सुरनार ॥ राजा देखी मोहियो, व्याप्यो तन मार ॥ सो० ॥ ८ ॥ इंगित नाव जाएगीकरी, श्रुतशील नरेश | मीठो अमृत सारिखो, आपे नपदेश || सो० ॥ ए ॥ जे नर उत्तम वंशना, कामे नीच नार ॥ लहे नीच गति ते सही, पूरयों पातक भार ॥ सो० ॥ १० ॥
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स्थान०
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