SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥३८॥ सूत्रार्थ प्रधीत जे, बहुश्रुतते सुविवेक ॥ द्वादशांग दश पूर्वधर, आदिक जेद अनेक ॥ ६ ॥ तेहनी नक्ति करे जली, वस्त्र पात्र अन्न पान ॥ यथा उचित दानें करी, पोषे देइ मान ॥ ७ ॥ रामो नवद्यायाणं तथा, रामो चनद्दस पुवीण ॥ ए पदनो गुणलो करे, दोय सहस्र प्रवीण ॥ ८ ॥ विधिवंदन विश्रामणा, आपे बहु सनमान ॥ नामकर्मोदय तीर्थकर, थाये नृदय प्रधान ॥ ए ॥ भक्ति करे बहुश्रुत तणी, जली वस्तुशुं जेह ॥ महेंद्रपाल नृपनी परें, जिनपद पामे तेह ॥ १० ॥ ढाल पहेली ॥ ते मुज मित्रामि डुक्करुं ॥ एदेशी ॥ अथवा ॥ हवे राणी पद्मावती ॥ देश ॥ सोपारक पाटण नलुं, इणी जरत मोकार || महेंइपाल राजा तिहां, बहुविद्या आधार॥ सो॥१॥ मिथ्यात्वी दर्शन तथा नृप जणी या ग्रंथ । विनयी गुरु सेवा करे, चाले तेहनें पंथ ॥ | सो० ॥२॥ कला कुशलपण तेहवो, तेहनो परिवार ॥ राय जिसो परजा तिसी, लोकोक्ति विचार ॥ सो० ॥ ३ ॥ सद्गरु योग अनावश्री, माने मिध्यात् ॥ पंचनूतथी नृपजे, आतम ए वात ॥ सो॥४॥ यतः॥ विना गुरुन्यो गुण नीर - धिन्यो, जानाति धर्म न विचक्षण । पि ॥ आकर्ण दीर्घोज्वललोचनोपि, दीपं विना पश्यति नांधकारे ॥ १ ॥ | पूर्वढाल || वाचाथी वाचस्पति, सरिखो परधान ॥ जिनधर्मी पूतातमा, नृपनुं बहुमान ॥ सो० ॥५॥ तास सहोदर शुनमति, नामे श्रुतशील ॥ प्राणथकी पण वालहो, नृपर्ने सुखसलील || सो० ॥ ६ ॥ गान करंती एकदा, मातंगीनी नार ॥ कानें कुंरुल कनकना, दामिनी चमकार || सो० ॥७ ॥ मुख पंकज पंजक इसे, रूपें सुरनार ॥ राजा देखी मोहियो, व्याप्यो तन मार ॥ सो० ॥ ८ ॥ इंगित नाव जाएगीकरी, श्रुतशील नरेश | मीठो अमृत सारिखो, आपे नपदेश || सो० ॥ ए ॥ जे नर उत्तम वंशना, कामे नीच नार ॥ लहे नीच गति ते सही, पूरयों पातक भार ॥ सो० ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only COOOD स्थान० ॥३॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy