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________________ वीश स्थान ॥ ३ तहमां न गणीये, नर राचे ते मूरख्ख रे॥गुण॥११॥ईणे संसार असारमें, सारने एक श्रीजिनधर्म रे॥ जिनधर्मविना क्य नवि होवे, महादुष्ट अष्ट ए कर्म रे ॥ गुण ॥१॥ ते धर्म अ बे प्रकारनो, पंचमहाव्रत मुनिवर धार रे॥ सुरनां सुख लहियें जघन्यथी, नत्कृष्टो मुक्ति दातार रे ॥ गुण ॥१३॥ बीजो वली धर्म श्रावक तणो, अणुव्रत शिवाव्रत सार रे ॥ नत्कृष्टो लहीयें बारमें, देव नूवनें अव-IN तार रे ॥ गुण ॥ १४ ॥ कामधेनु कल्पसुरमणी, एक नवनां आपे सुख्ख रे ॥ ए धर्म नवान्नव सुख दीये, कापे नवनवना दुख्ख रे॥गुण ॥१५॥ सांसारिक दुःखथी आतमा, मूकाये धर्म पसाय रे॥ समकित सहित जो कीजीयें, जिनहर्ष कहे ए नपाय रे ॥ गुण ॥१६॥ ॥दोहा॥ एहवी सांजली देशाना, श्रीगुरुतणी विशुद्ध ॥ मीठी अमृत सारखी, ततहण नृप प्रतिबुझ॥ SE१॥ दुःखत्रय आवर्तमां, नमियो प्राणी मुन्ज ॥ करुणानिधि तारो हवे, शरण आव्यो हुँ तुज॥ Sel ॥ जिम सुख देवाणु प्पिया, मा पमिबंध करेह ॥ गुरु आदेश लेई करी, आव्यो राय घरेह ॥Na Nar३॥ साते खेत्रे वावयु, वित्त सुवित्त नरेश ॥ श्रीजिनन्नक्ति करी घणी, संघन्नक्ति सुविशेष ॥४॥ राज्य धुरायें थापियो, पुरुषसिंह कुमार ॥ मंत्री सहित सनबर्वे, नृप आव्यो तेणीवार ॥ ५॥ गुरुपासे आवी करी, बे जण दीक्षा लीध ॥ गुरुपासे शीखी क्रिया, षष्टाष्टम तपकीध ॥ ६ ॥ दुष्कर व्रत तप आदरयु, समिति गुप्ति प्रति पाल ॥ गुण सत्तावीशें करी, शोनित नित्य विशाल ॥ ७ ॥ राजऋषि नव पूर्वधर, धरे व्रत अप्रमत्त ॥ एक दिवस मन चिंतवे, श्रुतजल निर्मलचित्त ॥७॥ du३॥ ॥ ढाल ॥ दशम। ॥ वीर सुणो मोरी वीनति, कर जोमी हो कहुं मननी वात के ॥ एदेशी ॥ LI गुरु गिरुआ गुरु गुणधरा, गुरु आपे हो ज्ञान लोचन सार।गुरु दुर्गति जावा न ये, परदेशी हो । Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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