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________________ ॥दोहा॥ तेणे अवसर आव्या तिहां, चननाणी अणगार ॥ देवमुनीश्वर विचरता, करता बहु नपगार au॥ राजा आव्यो वांदवा, अनिगम सांचवी पंच ॥ वांदी बेगेनक्तिशुं, बोडी सकल खल खंच ॥ र ॥ पुरवासी आव्या घणा, सुरणवा श्रीगुरुवाण ॥ आचारज ये देशना, प्राणीने हिताण३ ॥ ढाल ॥ नवमी ॥ वीबियानी देशी ॥ अथवा प्राणीवाणी जिनतणी ॥ एदेशी॥ गुरु आपे इणिपरे देशना, दोहिलो मानुष अवतार रे ॥ देश आरजकुल आरोग्यता, आवखु वली पूरण धार रे ॥ गुण॥१॥ बुद्धिधरमनी संपदा, धरमें वली ऐक्य नाव रे ॥ दोहेली सामग्री धर्मनी, लहेवी नवसायर नाव रे ॥ गुण ॥२॥ चनरासी लख योनिमां, दोहिलो मानव अवतार रेए जीव नमी रह्यो तेहमां, कुल कोमी लाख मोकाररे ॥ गुण ॥ पृथिवि पाणी वन्हि वायरा, सात सात प्रत्येके जाण रे ॥ दशलाख प्रत्येक वनस्पति, साधारण चनद वखाण रे ॥ गुण ॥ ४॥ वे बे लाख विकलेंश्यिा , देवता नारकी तिर्यंच रे ॥ चार चार लाख एहना, गणो नर चौदलाख Nasण संच रे ॥ गु० ॥५॥ अनंतपुदगल आवर्तमां, कीधां प्राणी केश्वाररे ॥ संसार समुश्पूरो नयो, प्रत्येकें कहे गणधार रे ॥ गुण ॥ ६॥ संसारी नमतो एहमां, कर्मलाघवधी लयां चाररे ॥ ए परम अंग दोहिलां, ते पाम्या एह विचाररे ॥ गु०॥॥ मानुषपणो श्रुतधर्मनो, सद्दहणाsa संयम वीर्य रे ॥ नर जन्मसार पामी करी, व्रतनियम धरो धरी धैर्य रे ॥ गुण ॥ ॥ आत्मनिर्मल तपशीलरों, यो अन्य सुपात्रं दान रे ॥ जीम मृत्यु न होवे फेरथी, लहो अविचल सुख निधानरे॥ Salगुण ॥ ५ ॥ नर सुरनां सुख बहु नोगव्यां, एवं जीवे वार अनंतरे ॥ तोहीपण तृपतो नवि अयो,sa नदीयें जिम नदीयांकंतरे ॥गुण॥१॥जे सांसारिक सुख नोगवी, आगल लहीयें बहू दुःखरे॥ते सुख Jain E t emational For Personal and Private Use Only wwwsannilorary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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