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________________ श्रुत अर्थधर, संयम यम धृतिध्यान ॥ प्रमुख गुणेकरी शोन्नता, तेहनें दीजें मान ॥ ६ ॥ अविर तेह प्रशंसियें, नत्तमजे गुणवंत ॥ पलितांकुर न प्रशंसी, श्मनांखे नगवंत ॥ ७॥ ढाल पहेली ॥ कोश्लो परवत धुंधलो रे लो ॥ ए देशी ॥ नक्ति करो गुणवंतनी रेलो, जिम थान गुणवंतरे भाइमा ॥ रत्नाधिकनें वांदतां रेलो, निर्जरा अर्थ एम रे नाश्मा ॥ नक्ति० ॥१॥ बाल ग्लानादिक साधुनां रेलो, संयम योग सीदायरेना यथायोग्य साहाज्य दिये रेलो, थिरकरि थविर कहाय रे ना॥ ॥॥ यतः॥ थिरकरणीपुण रो, पंचतिव्वाचारिएसु अथ्थेसु ॥ जोजण्यसीयश्जई, संतबलोतं घिरं कुण ॥१॥ ढाल | तेहने शु६ अन्नपान ये रे लो, शुश्वसतिने पात्र रे भा॥ नैषज्य वस्त्रादिक दिये रे लो, करे विश्राaमण गात्र रे ॥ ना ॥ न ॥ ३॥ करे विनय पर्युपासना रेलो, देखी साहामो जायरे ॥ना॥ वलतां बोलावे वली रेलो, वाट देखामे आय रे ॥ नाणानामाआदर आपे नगीने रेलो, आसन मांमे आगरे ॥ना ॥ जोमीकरी विनयांजली रेलो, बोलावे नली वाण रे ॥ ना ॥ नायाबार आवर्त वंदणां रेलो, प्रधरिय नमाह रे ना॥ सुखसंयमयात्रातणं रेलो, पाये जे निर्वाह रे ॥ना न ॥ ६ ॥ यत्र कालदिकें रेलो, करे नक्ति उचित रे ना ॥ कर्त्ता सहु सुख श्रेयनुं रेलो, बोधबीज प्रापत्त रेना ॥ न ॥ ७ ॥ स्थविरत्नक्तिथी पामियें रेलो, शिवतरुनु ते बीजरे ना ॥ कोटवाल नयसारनी रे लो, परें लहे बोधबीज रे ॥ भा ॥ न ॥ ७॥ यतः ॥ वस्त्रं पात्रं नुक्त जापानं पवित्रं, स्थानं ज्ञानं नेषजं पुण्यहेतु ॥ ये यचंति स्वात्मन्नावैकसारं, ते सर्वांगे सौख्यमासा-JOD दयंति ॥१॥ अर्थः-जे मनुष्यो, पुण्यकारणमाटे पोताना नावथी अत्यंत सार रूप अर्थात् एक स्वात्मजाव तेज जेनीअंदर साररुपले, एमजागी जेम बने तेम. स्थविर श्रमणादियोने वस्त्र, पात्र, Jain Educat iemational For Personal and Private Use Only wwwittarilaary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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