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________________ वीशअन्नपान, पवित्र स्थान, ज्ञानना साधन रूप, पुस्तक अनै औषध विगेरे आपेले तेओ सर्वांग सुखने । स्थान पामेले ॥॥ढाल ॥ स्थविरक्तिलणी करे रेलो. दो सहस्रनो जाप रेना॥नमोलोए सव्वा साहूणं रेलो, जाये नवना ताप रे ना ॥ न ॥ ए ॥ सर्वजिने परिवारने रेलो, वांदे उलट आण रे ॥ ना ॥ सांप्रत समय विदेहमां रे लो, प्रवर्त्तमान गुणखाण रे ना ॥ न ॥ १० ॥ नत्कृष्ट बे कोमी केवली रे लो, बे कोमी सहस्र मुणिंद रे ना ॥ शुद्ध संयम पाले सदा रेलो, वांदे धरिय आणंद रे ना ॥ न ॥ ११ ॥ मुनिगुणनी अनुमोदना रेलो, करतां ते गुण होय रे ना॥ तेगुण साधु तणा सुणो रेलो, नाखो कशमल धोइ रे ना ॥ न ॥ १२ ॥ षट्वत षटकाय रकणा Nal रेलो, निग्रह इंडी लोह रे ना ॥ नावविशुई पमिलेहणा रे लो, करण विशुदि सोह रे नान NI १३ ॥ संयम युक्त क्षमा धरे रेलो, मण वय काय जीपंत रे ना ॥ सीतादिक पीमा सहे रेलो, सहे उपसर्ग मरणांत रे ना ॥ न ॥ १४ ॥ सत्तावीश गुण साधुना रेलो, अनुमोदना करे तासरे । Kalना ॥ कहे जिनहर्ष लहे घणो रेलो, एहथी लील विलास रे ना ॥ न ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ II पर्यायें विंशति वरस, आठ वरस वयमान ॥ श्राय श्रुते समयांगधर, स्थविरविद्या सुप्रधान ॥ १॥ SEL थविर जेह त्रिहुँनेदनां, अन्नादिक ये तास ॥ बहु नक्तं वात्सल्यता, लहे नज्वल गुणवास॥२॥ Raटाली नीचैर्गोत्रने, पामे ते ततकाल ॥ तीर्थकर संपद यथा, पद्मोत्तर नूपाल ॥३॥ ढाल बीजी॥ रामचंके बाग, चांपो मोहोरी रह्योरी॥ एदेशी॥ ॥३ ॥ इणहीज जरत मोझार, नगरी वणारसी सोहे ॥ घणा कण ऋदि समृद्धि, सहुजननां मन मोहे ॥१॥ पद्मोत्तर नूपाल, जस पाय नरिंद नमेरी ॥ निजमुख न्याय करंत,दूर अन्याय गमेरी Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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