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॥ २ ॥ जीत्यो रूपें काम, तायें अनंग नयोरी ॥ जाको देखी प्रताप, रवि आकाश गयोरी ॥ ३ ॥ चंदमंगल मुखज्योति, सो तो बीन लइरी ॥ सुरपति सुप्रसन होइ, आपणी ऋद्धि दरी ॥ ४॥ गज अंगज मन जास, नारि श्रीनर मेरी ॥ स्वांतविना नृपगार, उत्तम गुण उपमेरी ॥ ५ ॥ पुनरपि शुनानिधान, सुंदर एक पुरी ॥ जय राजा करे राज, बहुत गजें तुरी ॥ ६ ॥ पद्मिनी जाणे साक्षात्, पद्मिनी तास सुता ॥ और कुमुदिनी नाम, शुनगुण रूपयुतारी ॥ ७ ॥ जास प्रबल सौभाग्य, भाग्य अनूप जरीरी ॥ गजपुर सिंहरथ राय, जीत्या सकल अरीरी ॥ ८ ॥ तसुघर कन्या दोइ, भोगावती पहिलीरी ॥ विक्रमेवती गुणवंत, सोहे रूप जलीरी ॥ एए ॥ कन्या धन्या चार, पद्मोत्तर नृप केरो, चित्रपट देखी रूप, मोहयो मन अधिकेरो ॥ १० ॥ आइ स्वयंवरा चालि, | सुकृत नदय करीरी ॥ पद्मोत्तर नृप चार, परणी प्रेम घरीरी ॥ ११ ॥ शोक परस्पर प्रीति, जानेके |सहु बहिनीरी ॥ द्वेष नही तिलमात, शोना बहु लहिनीरी ||१२|| मैत्र्यादि भावना सँग, ज्युं संयत व्रत पामेरी ॥ चार नारीशुं राय, त्युं सुख रति कामयेरी ॥१३॥ एकदिन कोशालनाथ, कामी सुग्रीव सुणीरी ॥ राणी रूप निधान, उपमा जास घणी ॥ १४ ॥ पद्मोत्तर सुखवास, जोगवे चार नारी ॥ इसी स्त्री नबे कोइ || त्रिभुवनमांहि नारीरी ॥ १५ ॥ | तेसुं लाग्यो मन राग, कांता कांति नली ॥ कुबुधी पठायो दूत, पतिशुं तुं मति मिलीरी ॥ १६ ॥ पद्मोत्तर नृप पास, दूतें वचन कह्योरी ॥ मंगावे सुग्रीव राय, तुज नारी मोरी ॥ १७ ॥ पद्मोत्तर कहे ताम, फूटो तास हीयोरी ॥ जे द्ये आपली नारी, धिग धिग तास जीयो ॥ १८ ॥ कामी देखे नाहीं, निशिदिन अंध मयोरी ॥ काढ्यो दूत विदारी, | निज प्रभु पास गयोरी ॥ १९५ ॥ वचन सुीयां दूत, राजा क्रोधें जार्योरी ॥ देइ नगारे जेरि, लशकर | सज्ज करचोरी ॥ २० ॥ चाल्यो नृप सुग्रीव, पद्मोत्तर निसुण्योरी ॥ सैन्य सज्यो तेरों नूरी, अहिपती
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