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________________ वीश ॥१२॥ एली श्रीगुरु, विद्याशक्ति अनेक ॥ थंया बौद्धमती सहु, चली न शके पद एक || ५ || जैनाचार्ये अमन्नणी, थंजी राख्या राज ॥ सेना मूकी नृप तदा, गुरुने हावाकाज ॥ ६ ॥ गुरुभक्ता जे देवता, सेना थंनी ताह || चित्रलिखित जेम पूतली, जोवे मांहोमांद ॥ ७ ॥ ननवाणी थइ तेटले, जो जीवे वा प्राश ॥ तो जजो चरण गुरुतयां, पामो लीलविलास ॥ ८ ॥ चमत्कार चित्त पामि या, राजादिक तिथिवार || दियातलो हठ मेलियो, मार्ग विना नहि सार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ गलियां रये साजन मिल्या धण वारी ॥ ए देशी ॥ XXXXXXXXX राजा बौद्ध सदु मिली, गुणवंता ॥ श्रव लाग्या पाय रे ॥ गुणवंता साधु ॥ जीवदया सम्यकत्वसूं ॥ गुणवंता० ॥ सहु को श्रावक थाय रे ॥ गुण ॥ १ ॥ तुं उत्तम अमने मिल्यो ॥ गुण ॥ अमने उत्तम कीध ॥ गुण ॥ जवसायर बूमता ॥ गुण ॥ तें श्रालंबन दीघ रे ॥ गुण ॥ २ ॥ एटला | दिन अज्ञानमें ॥ गु० ॥ सेव्यो धर्म मिथ्यात्व रे ॥ गुण ॥ तुम सुपसायें अमे हवे ॥ गु० ॥ जाएगी जाति नाति रे ॥ गुण ॥ ३ ॥ धर्म पमायो श्रममणी ॥ गु० ॥ कीधो बहु उपकार रे ॥ गु० ॥ नरक पर्यंता राखिया ॥ गु० ॥ नपगारी अणगार रे ॥ गुण ॥ ४ ॥ श्रमनपरे करुणा करी ॥ गु० ॥ ब्यो अन्नपान विचार रे ॥ गुण ॥ घर घर करे आमंत्रणा ॥ गुण ॥ लीयो सुतो आहार |रे ॥ गु० ॥ ५ ॥ जिनशासन नन्नति श्रइ ॥ गु० ॥ पुरमें परमानंद रे ॥ गु | तिहांथी नागपुरें गया, || गु० ॥ मेरुप्रन्न सूरिंद रे ॥ गु० ॥ ६ ॥ देवें कमल तिहां रच्युं ॥ गुण ॥ हेमतं मनरंग रे || गु० ॥ श्राचारज बेठा तिहां ॥ गु० ॥ रवि उदयाचल संग रे ॥ गुणधर्मतल । दिये देशना || || || | वरसे अमृत धार रे ॥ गुण् ॥ श्रवापुढे चातकपरे ॥ गु० ॥ पियेलोक अपार रे ॥ गुण् ॥ ८ ॥ राजा सांजलि वियो ॥ ० ॥ वांदा गुरुना पाय ॥ गु० ॥ दय गय पायक परिवरयो ॥ गुण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान० ॥१२॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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