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वीश
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एली श्रीगुरु, विद्याशक्ति अनेक ॥ थंया बौद्धमती सहु, चली न शके पद एक || ५ || जैनाचार्ये अमन्नणी, थंजी राख्या राज ॥ सेना मूकी नृप तदा, गुरुने हावाकाज ॥ ६ ॥ गुरुभक्ता जे देवता, सेना थंनी ताह || चित्रलिखित जेम पूतली, जोवे मांहोमांद ॥ ७ ॥ ननवाणी थइ तेटले, जो जीवे वा प्राश ॥ तो जजो चरण गुरुतयां, पामो लीलविलास ॥ ८ ॥ चमत्कार चित्त पामि या, राजादिक तिथिवार || दियातलो हठ मेलियो, मार्ग विना नहि सार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ५ मी ॥ गलियां रये साजन मिल्या धण वारी ॥ ए देशी ॥
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राजा बौद्ध सदु मिली, गुणवंता ॥ श्रव लाग्या पाय रे ॥ गुणवंता साधु ॥ जीवदया सम्यकत्वसूं ॥ गुणवंता० ॥ सहु को श्रावक थाय रे ॥ गुण ॥ १ ॥ तुं उत्तम अमने मिल्यो ॥ गुण ॥ अमने उत्तम कीध ॥ गुण ॥ जवसायर बूमता ॥ गुण ॥ तें श्रालंबन दीघ रे ॥ गुण ॥ २ ॥ एटला | दिन अज्ञानमें ॥ गु० ॥ सेव्यो धर्म मिथ्यात्व रे ॥ गुण ॥ तुम सुपसायें अमे हवे ॥ गु० ॥ जाएगी जाति नाति रे ॥ गुण ॥ ३ ॥ धर्म पमायो श्रममणी ॥ गु० ॥ कीधो बहु उपकार रे ॥ गु० ॥ नरक पर्यंता राखिया ॥ गु० ॥ नपगारी अणगार रे ॥ गुण ॥ ४ ॥ श्रमनपरे करुणा करी ॥ गु० ॥ ब्यो अन्नपान विचार रे ॥ गुण ॥ घर घर करे आमंत्रणा ॥ गुण ॥ लीयो सुतो आहार |रे ॥ गु० ॥ ५ ॥ जिनशासन नन्नति श्रइ ॥ गु० ॥ पुरमें परमानंद रे ॥ गु | तिहांथी नागपुरें गया, || गु० ॥ मेरुप्रन्न सूरिंद रे ॥ गु० ॥ ६ ॥ देवें कमल तिहां रच्युं ॥ गुण ॥ हेमतं मनरंग रे || गु० ॥ श्राचारज बेठा तिहां ॥ गु० ॥ रवि उदयाचल संग रे ॥ गुणधर्मतल । दिये देशना || || || | वरसे अमृत धार रे ॥ गुण् ॥ श्रवापुढे चातकपरे ॥ गु० ॥ पियेलोक अपार रे ॥ गुण् ॥ ८ ॥ राजा सांजलि वियो ॥ ० ॥ वांदा गुरुना पाय ॥ गु० ॥ दय गय पायक परिवरयो ॥ गुण ॥
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स्थान०
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