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________________ वीशण स्थान रुनी पासे, राज्यकाज करि वल्यो नलासें ॥२॥ गुरुनें बंदी निजपुर आयो, राय चरण प्रणमी सुख पायो । नृप नाखे अचरिज को दीगे, तिणि नगरी ते कहे मुज मीगे ॥३॥ मंत्री कहे सानल महाराजा, चंपा नृपना अधिक दीवाजा ॥ चंपानां मंदिर अतिसोहे, जाणे देव नुवन। मनमोहे ॥४॥जोतां लोयण तृपति न पामे, दाता नोकता धा धामें ॥ श्रीवासुपूज्य जिनेश्वर राजें, पुरमांहे प्रासाद बिराजें ॥ ५ ॥ जगत्र नणी आह्लाद नपावे, त्रिन्नुवन जेहनी पूज रचावे ॥ Ra त्रैलोक्यसुंदर नाम कहावे, अद्भुत शोना नयण सोहावे ॥६॥ जेहनी शोना इंश निहाली, एडवो सोचे निज मन वाली॥मज विमान शोना नहीं एहवी.श्रीजिनग्रहनी शोनाजे Sal त्रैलोक्यनेत्रने कामणगारी, मणिनी प्रतिमा सुंदर सारी ॥ जेहनी नपमा कही न जावे, नूषित salदिव्यानरण सुहावे ॥ ७ ॥ में जिनवरनी प्रतिमा देखी, सफल कियां निज नयण विशेषी ॥ पुण्योदयश्री दरिसण पाम्यो, नावनगतिरों में शिर नाम्यो ॥ तिहां श्रीधर्मघोष मुनिराया, तास समीपें दरिसण पाया ॥ पयप्रणमी वेगे गुरु आगें, हियो धर्मतणी मति जागे ॥१०॥ श्रीगुरु सिद्धस्वरूप वखाएयो, में पण गुरु सुपसायें जाएयो॥ मंत्री नृपनें कहो न दे, जिम | निर्मल रीतामां हे ॥ ११ ॥ प्रतिबिंबी साहातपणेथी, राये दीगे हरष घणेथी॥ राजा मनमें एम विचारे, ते गुरु कहीयें इहां पधारे ॥१२॥राय मनोरथ सफला करवा, तम हरवा ॥ धर्मघोष बहु साधु संघाते, समवसरया वनमांहे प्रनातें ॥१३॥ राजा गुरुर्नु आगम जाणी, गती तुरत हरये नराणी ॥ मंत्री साधे नूपति आया, विधिशुं वंदी मुनिवर पाया॥१॥सिम स्वरूप सहित गुरु नासे, करुणामय जिनधर्म प्रकाशे ॥ धर्मतणा ले दोय प्रकारा, साधु श्रावकन करो विचारा ॥१५॥ समकित सहित धर्मजिन नाख्यो, मुक्तितणो दायक ते दाख्यो । राजा ET ६॥ Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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