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________________ वीश दिर उन्नत करी, विद्यासक्तं तात ॥ पाणिग्रहणने कारणे, इहां राखी ए वात ॥ ४ ॥ कृपा धाम हवे कर, पूरय मनोरथ नाह ॥ पांचे नारी ताहरी, कर श्रमशुं विवाह ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ५ मी देशी ॥ साहेलानी ॥ रागखंभाती ॥ पांचे कन्या प्रेमसुं ए, परणी कुमर सुजालो रे || गंधर्व विवाह विधेकरी, युगपत् मेल्यो पालो रे ॥ १ ॥ कुमर विचारे हो पुण्य दशा माहेरी फुली रे, पांचे नारी हो मनमानी, मुजने | मिली रे || ए की ॥ ते नारीसाथे तिहां रे, मोदक नक्षण कीधां रे, प्रिया संयोग का सुख जज्यो रे, संसारिक फल लीधां रे || कु० ॥ १ ॥ रथ बेसामी तेहने रे, चाल्यो लेइ नारी रे ॥ सफल जन्म निजमनतनतयूं रे, वनिता प्रीति वधारी रे || कु० ॥ २ ॥ अगले जातां निरखियो रे, अरिहंत चैत्य नदारो रे || देखी मनमें हरखियो, जोवा चाल्यो कुमारो रे, क० ॥ ३ ॥ देवलमां पेठो विधे रे, निर्मल चंड्समानो रे, जैनी प्रतिमाने नम्या रे, स्तवना की धि प्रधानो रे || कु० ॥ ४ ॥ निष्पापा तेहनी प्रिया रे, तेपण जिनवर बंदी रे || जावें जावे भावना रे, सुधा गिरा आनंदी रे ॥ क० ॥ ५ ॥ राजकुमर मन कौतुकी रे, चढियो जिनगृह शृंगो रे ॥ जोवा शोना प्रासादनी रे, पाम्यो कि मिसंगो रे ॥ क० ॥ ६ ॥ गात्र अखंडित सहू रह्यां, पुर्व पुण्य पसाय रे ॥ न्यायवंत नर जे दुवे रे, चित दुख तसु न रहावे रे ॥ क० ॥ ७ ॥ नार्या जे ते जेटले रे, जिनगृहमांहि कुमारो रे || देखे नहि ते नारिनेरे, चिंते चित्तमोकारो रे ॥ कण् ॥ ८ ॥ कोइ वैरी लेइ गयो रे, इहां की मुजनारी रे || खुणे एक रह्यो चिंतवे रे, पामी निधि में हारी रे ॥ क० ॥ एए ॥ सर्वार्त्ति शांति नली तिहां रे, पवित्र यश नृपनंदो रे ॥ पूज्या अरिहंत प्रेम रे, कमले घरि आनंदो |रे ॥ क ॥ १० ॥ ष्ट दुरित दूरे ब्रजे, संपति सघली आवे रे | कीर्ति वाधे जगतमें रे, जे जिनपूजा Jain Educationa International त्रिनेत्रत्र ॥११४॥ For Personal and Private Use Only DDDD स्थान‍ ॥११४॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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