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________________ मोलवी ए, ख्यो ए सुखगण ए ॥ ए ॥ चंज्ञनना हुँ तास, धार आवी तुजपास॥विलंब न कीजीये ए, परणी लीजिये ए ॥ १० ॥ वचन सुणी तिणिवार, परणी राजकुमार ॥ समर विजय करे ए, नत्सव बहुपरे ए ॥ ११ ॥ मांहोमांहे सार, बांधी प्रीति अपार ॥ सागर सहित धरी ए, नार ले करी ए ॥ १२ ॥ रथे बेसी तिणिवार, धरतो हर्ष अपार ॥ चाल्यो निजपुर नणी ए, नत्कंग घणी ए ॥ १३ ॥ रत्नमंदिर फलकंत, नामंगल सोहंत ॥ दीगे आगले ए, रवि जिम मलहले ए ॥१ मूकी तिहां रथ नारि, जोवा ख्याल कुमारि ॥ वनमां संचर्यो ए, मन साहस धस्यो ए॥ १५ ॥Nal alवीणा वेणु मृदंग, नाटक गीत सुरंग ॥ करती कामणी ए, दी। पंच जणीए ॥ १६ ॥ सुंदर जास शरीर, पहेरयां निर्मल चीर ॥ घरेणे शोन्नती ए, नरमन मोहती ए ॥ १७ ॥ दीठी कन्या तत्र, जाणे लेखी चित्र ॥ सागर नलस्यो ए, मनमांहे हस्यो ए ॥ १८ ॥ नठी दीधुं मान, बेसण आसण दान, विनय कीधो घणो ए, पांचे ए तेतणो ए॥ १७ ॥ ते मांहे ज्येष्ठा जेह, कर जोडी कहे तेह ॥ Salकुण तमे किहां रहो ए, केहना सुत कहो ए ॥ २० ॥ यथास्थित स्ववृत्तांत, सघलो कह्यो खांत ॥ Saनिसुणी कहे वली ए, कन्या मन रली ए॥ २१॥ नलो पुरुष सुजाण, कहे जिन हर्ष प्रमाणातुजने अमे ओलख्यो ए, नृपसुत अमें लिख्यो ए ॥ २२ ॥ सर्वगाथा ॥ १११ ॥ ॥ दोहा ॥ । कहे कन्या विद्याधरी, सोनल चतुर सुजाण ॥ वैताढ्य पर्वत रत्नपुरे, तिहां विद्याधर राण ॥१॥ सिंहनाद नृप सिंह परे, सबल पराक्रम जास ॥ खेचर माने आगन्या, विद्यातणो निवास॥॥ नशे जयां गौरी सुगुण, तारा रंना एह ॥ सुता तवागम जाणियो, नैमित्तिक वचनेह ॥३॥ रत्नमं. Jain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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