SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीश ॥११३॥ भन ॥ दोहा ॥ गज वाजी के रथ चडया, पहेरचा कवच सनाह || सुन आयुध जालियां, धरतां अंग नाह | ॥ १ ॥ सागर जीम सागरनली, वींटी वलयाकार ॥ वचन कहे मुख एहवां, रे रे इष्टगमार ॥२॥ या सामो हथियार ग्रहि, मृत्यु श्राव्यं तुज श्राज ॥ चिहुं दिश सैन्य निहालिने, हरि जिम बढ्यो गाज ॥ ३ ॥ श्रायुध पूरण देखि रथ, कुदी तिहां वश्व ॥ सुनट सारथीने दणी, सुनटे सगले दीव ॥ ४ ॥ सज्ज श्रयो आयुध गृही, सागर करण संग्राम | युद्ध करे अरिसैन्यशुं, पौरव चढियो ताम ॥ ५ ॥ एकेपासे एकलो, एके पासे कोम ॥ कण कण कीधा के विया, सबल लगामी खोम ॥ ६ ॥ नानुं लशकर दशदिशे, रह्यो न कोइ पग मांग ॥ सूरज किरणा आगले, तिमिर जाय जिम बांम ॥ ॥ पुण्य प्रजावें कुमरनी, जीत थइ संग्राम ॥ समर विजय राजानणी, जीत्यो वाधी माम ॥ ढाल ४ श्री ॥ अढियानी ॥ ति अवसर ऐक नार, आवी तिहां शिरदार | विनयान्वित रहीए, जाषे गहगही ए ॥ १ ॥ कुशवर्धन पुर राय, कमलचंद कदेवाय ॥ समरकंता प्रियाए, भुवनकांता धिया ए ॥ २ ॥ विश्वजली आनंद, नपजावे जिम चंद ॥ रूपगु करी ए, सोहे सुंदरी ॥ ३ ॥ जिनधर्ममांहे प्रवीण, जिनपूजासुं लीए ॥ पुष्य पूतातमा ए, सुरकन्योपमा ए ॥ ४ ॥ ताहरा गुण सोनाग, सांजलि | उपन्यो राग ॥ ते कन्या नली ए, इन्हा तुजतली ए ॥ ५ ॥ पाणीग्रहण उत्साह, चाहे तुजने नाह ॥ निशदिन ताहरु ए, ध्यान धरे खरं ए ॥ ६ ॥ शेलेशनगरनो स्वाम, सुदर्शन इसे नाम ॥ समर विजय सहीए, तस सुत गहगही ए ॥ ७ ॥ हरी कुमरी तिले राय, मूकी इस वन आय ॥ ते जीत्यो टिको ए, समरांगण को ए ॥ ८ ॥ परण्यो कुमरी तेह, आणी परम सनेह ॥ ब्यो गुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थानण ॥११३॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy