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आदरशुं जिन पूज, करे ते या जोगे, व्यस्तुति पातक दहे ॥ १७ ॥ एहश्री चारित्र लाज, थाये अनुक्रमें, कर्माष्टक बल निर्दलेए ॥ तेमाटे जलेजावें, इहां प्रवर्त्तवो, सम्यग् दृष्टि नवि खले ए ||२०|| पूजा विधि प्रज्ञात जिनगुएा नवि जाणो, पण शुभ परिणामे करेए ॥ कही यें ते प्रणांनोग व्यस्तव सही, इम जिनहर्ष समुच्चरेए ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ॥ २८४ ॥
दोहा ॥
" जिनगुण थानक नवि लह्यां, तोपण गुरानो खेत ॥ बोधिलाजनी शुद्धिनर, जावविशुः वे हेत ॥ १ ॥ अशुनय जावी दुवे, आगल जास कल्याण ॥ प्रमुलिय गुण मुझथकी, प्रीतिवधे सुप्रमाण ॥ २ ॥ जिनदेखी देषी दुवे, निबिरुकर्म संसार, मरणसमें रोगी नाणी, श्वा अपथ्य आहार ॥ ३ ॥ धर्मबिंब जिनवरतणो, अशुननाव जय प्राण ॥ तेमाटे प्रद्वेषनो, वर्जे लेश प्रमाण ॥ ४ ॥ मित्रां बलों तारों कही, दीता मिथ्यादृष्टि ॥ थिरों कांत सूरज्या, प्रन सोमा चारे सुदृष्टि ॥ ५ ॥ त्र गोमेय वली काष्ट कहि, दीपक अगनि विचार || रत्नं नक्षत्र वि ईदुर्मा, ते सारिखी धार ॥ ६ ॥ योगदृष्टिमां कह्यो, आग्दृष्टि अधिकार || करे नक्ति ए सारिखी, जिनवरनी हितकार ॥ ७ ॥ पुदगलमांहे लदे, अथवा तिए नवमांहि ॥ करो नक्ति कोमल पणे, हियमेधरी नचाहि ॥ ८ ॥ श्रीजिननक्ति वधारवा, प्रथम स्थान शुभभाव ॥ करो तीर्थकर पद दीयण, तारण नवजल नाव ॥ ५ ॥
ढाल बारमी ॥ सारकर सारकर सामी सीमंधरा ॥ ए देशी ॥
"देशनां सांजली राय मनमां रली, केवलि मुनि तो पाय लागे ॥ हाथ जोडी करी अंगमोमी करी, शुद्ध सम्यक्त्व जिनधर्ममागे ॥ देश ॥ १ ॥ श्राश्वत नावियो, गेहनिज आवियो, हेम जिन
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