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________________ त्रीश ॥११॥ XXDDDDDD आद्य पूजा नत्कृष्ट, कल्पावधि तणा, सुख आपे संशय नहीं ए ॥ नावन्नगतिथी होय, फल सम्यक परें, महा नदयपद स्थिति लही ए ॥ ६ ॥ यतः ॥ नकोसं दव्वश्रयं श्राराहिय जाइ अच्चुयं जाव | नावण्यएल पावर, अंतमुदुत्ते निव्वाणं ॥ ७ ॥ मेरुस्स सरिसवस्तय, जत्तिय मित्तंतु अंतरंहोइ ॥ दव्वथयं जावथय, अंतरंत नियंणेयं ॥ ८ ॥ ढाल ॥ सात्विकी राजसीनक्ति, तामसी इतित्रिधा, मन अभिप्राय विशेषथी ए ॥ श्रीजिनवरनी नक्ति, करतां पामीयें, फल मनवंबित जेहथी ए ॥ एए ॥ निर्मलगुणनी श्रेणि, श्री अरिहंतनासुं, मन रातो जेहनोए ॥ जेदी साते धात, रंग न उतरे, उपसर्गे पण तेहनोए ॥ १० ॥ जिनसंबंधी काय, अर्थे सहु धन, आपे जे नव्य प्राणीयाए ॥ करे निरंतर नक्ति, महामहोत्सवें, ते जगमांहे वखाणीयाए ॥। ११ ॥ शक्त्यनुसारें भक्ति, जिनवरनी करे, निःस्पृह आशय मनधरीए | तेह सात्विकी भक्ति, थाये मुनिकहे, लोकक्ष्य फल ये खरीए ॥ १२ ॥ इह लौकिक फल प्राप्ति, देतें जेह करे, अथवा लोक रंजन जीए ॥ अथवा निजवृत्त्यर्थ, कहीयें राजसी, जाणो नक्ति जिनवर ती ॥ १३ ॥ दुसमणनां कय काजें, आपदा टालवा, काजें अज्ञान मनवसीए | अथवा धरी अहंकार, मत्सर मनधरी, नक्ति कहते तामसीए ॥ १४ ॥ रजस्तमोमयी नक्ति, सर्व प्राणीजणी, पांमतां ते सोहेलीए ॥ उत्तम सात्विकी भक्ति, राजसी मध्यमा, जघन्य जाणवी तामसीए ॥ तत्त्व ताजे जाण, ए नवि आदरे, युक्ति करी गुरु परिसीए । १६ ।। अथवा पंच प्रकार भक्ति, जिणंदनी, पुष्पादिक अर्चा करे || राखे श्री जिनंख्य, यात्रा नत्सव, जिन आशा मस्तक घरेए ॥ १७ ॥ दिधा जक्ति जिनराय, अथवा मनधरो, पहेली तो आनोगथीए ॥ अनांनोगथी अन्य, सर्वोत्तम श्राद्य, बीजी बहुगुण योगश्री ॥ १८ ॥ जिन गुएानोपरज्ञात, सुविधि शुभमती, तेहना जाव जला कए ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only DDDDDDDDDDD स्थान० ॥११॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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