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________________ वीश ԽԱԼ ए, वधतुं अवधि व मास तो ॥ देववदुं विधिशुं वली ए, त्रण वेला उल्लास तो ॥ २० ॥ नित्सवतें लहुं जेहवो ए, जात पाणी निर्दोष तो ॥ प्रांबिल तप ते पारणे ए, करूं जिनदर्ष संतोष तो ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ तप करतो इम करूं, मुनि संतोषानंद ॥ वपुस्तेज दिन दिन वधे, जिम ग्रीष्मे जलधि अमंद || १ || साधुविहारें विहरता, शंखपुरीतणे नृपांत ॥ नृष्णकाल उनी धरा, मुनि पोहोता एकांत ॥ २ ॥ माथे तावक तमतमे, वेलु दाऊ पाय ॥ तिहां लीधी प्रतापना, सूरज सन्मुख थाय ॥ ३ ॥ गुणश्लाधा तेहनी करी, सज्ञामांहि सुरराय ॥ करे वंदना नक्तिसूं, मुनिने शीश नमाय ॥ ४ ॥ कनककेतु महाराज ऋषि, तपसी साधु महंत || जात पाणि ले एषणी, प्रशु६ न ले प्राणांत ॥ ५ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ साहेबा मोतिको हमारो ॥ ए देशी || मुनि गुणकीर्तन खाएयुं, वरुणसुरें मनमां न प्राएयुं ॥ तेहनी जइ करूं परीक्षा, साधुनी जर करूंजी | कान सुसी खोटी पण थाए, नयरों दीठी साची मनाए ॥ ते० ॥ १ ॥ रागी अबता गुण जाखे, रागी थोडो गुएा बहु दाखे ॥ जो देखुं नहि श्रापणे नयरों, तो न पतीजो किसके वयणें ॥ ते ॥ २ ॥ सुरपतिने कुल मोहे चडी बोले, ते बोले जेहवो इसे तोले || जीजी सहु एहने मुखें जाखे, एहनुं मन सहु सेवक राखे ॥ ते || ३ || जिम तिम बोले पण न विमासे, इम बोलतां अपजस श्राशे ॥ साहेब बोले सदु कहे साधुं हुं एहने वचनें नवि राचुं ॥ ० ॥ ४ ॥ वरुणानिध लोकपाल तिवारे, जरत अवनी मुनिपास पधारे ॥ अशुद्ध आहार कियो सुर सघले, जेथी विशुद्ध Jain Educarernational *** For Personal and Private Use Only स्थान० ॥ए५॥ sindidrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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