________________
धरे सहु लोक तो॥ किणश्क मुखथी सोनब्यो ए, निशानर एक श्लोकतो ॥ ७॥ तद्यथा ॥ सुखाय सर्वजंतूनां, प्रायः सर्वाः प्रवृत्तयः॥ न धर्मेण विना सौख्य, धर्मश्चारंजवर्जनात् ॥१॥
अर्थः-घणुं करीने सर्वजंतुओनी प्रवत्ति सुखनेमाटे ने परंतु ते सुख, धर्म विना मलतुं Salनथी अने ते धर्म पण आरंनोने वर्जवाथी थाय . ॥ " सारांश के सुखार्थी पुरुषोए। Nalधर्ममां तत्परथकुं" ॥ सांजली मनमें नपन्यो ए, रायन्नणी संवेग तो॥ चितमाहेश्म चिंतवे ए,
मुकी सहु नगि तो ॥ ७ ॥ प्रातसमें व्रत आदरूं ए, तोमी माया जाल तो॥ आरंन गेहुं राजनो NA
ए॥ दुख पावकनी काल तो॥ ए॥ धर्म मनोरथ इणिपरे ए, करतां शीतल काय तो॥थ नींद Nalआवे सुखें ए, रोग गये सुख थाय तो॥१॥ प्रात श्रये पवित्रातमा ए, पथ्य क्रिया विधि कीध तो॥
सचिवादिक आगल कह्यो ए, रयणी वृत्तांत प्रसीध तो॥१॥ कंचण कोमी व्यय करी ए, देश सुपात्र
दान तो ॥ श्रीजिन नक्ति प्रजा करी ए.साहमिने सनमान तो॥ १॥ मलयकेत निजसतना sale, राज्यधुरंधर कीध तो ॥ गुरु श्रीशांतिसूरिकने ए, संवेगें व्रत लीध तो ॥१३॥ राय साथे व्रत
आदरयु ए, सचिव सेवक नमराव तो ॥ शीखे गुरुपासे सहु ए, साधु मारग धरी भाव तो ॥ १५ ॥ हादशांग भणतां का ए, जीते अनंग मुनिराय तो॥ गुरुवाणी सुणि अन्यदा ए, थानक तपफल थाय तो ॥१५॥ अरिहंतन्नक्ति सहित करे ए, वीशथानकतप जेह तो ॥ विधिसुं नावना नावतो ए, जिनपद पामे तेह तो ॥१६॥ तेमांहे पद चौदमुं ए, मुकी करी सर्वाश तो ॥ विधिशुं जे तप आदरे ए, जिनपद पाये तास तो॥१७॥ नपमितदोष शरीरना ए, जिम लंघनथी जाय तो ॥ तिम दुप्कर तपस्या करी ए, कर्मतणो कय थाय तो ॥१०॥ सांजलि मुनि गुरुमुख श्सुं ए, अन्निग्रह लीधो घोर तो ॥ हादशन्नेदें तप करूं ए, ज्यां लगे काया जोर तो॥१५॥ चोथथकी मांझी करी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org