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नत्सवसूं आव्यो मंदिरे, सहु मलिया हो परियण परिवार ॥ बहु दिवसें कमर निहालियो, सहु कोने हो थियो हर्ष अपार ॥ स ॥ १२ ॥ आठ तरुणी परणी आवियो, जूवो जूवो हो एहनुं सोनाग ॥
स० ॥ तिद्याधर सेवकने सगा, पुण्य पोते हो दिसे ने अथाग ॥ स० ॥ १३ ॥ सांसारिक सुख IN विलसे सदा, णी अवसर हो केवली नगवान ॥ नुवनावबोधनामे मुनि, नतरिया हो आजे सूर्यो
द्यान ॥ स ॥ १५ ॥ आव्यो नृप नयान्वित तिहां, वंदनने हो काजे मुनिपाय ॥ मुनिने दे तीन प्रदक्षिणा, बेग बेग हो प्रणमी चित लाय ॥ स ॥ १५ ॥ पुरना पण लोक आव्या तिहां, धर्मी
जिन हो सुणवा गुरुवाण ॥ मुनिराज दिये धर्म देशना, मीठी मीठी हो अमृत गुणखाण ॥ सण V१६॥ यतः॥ लक्ष्मीर्वेश्मनि नारती च वदने शौर्यं च दोष्णोर्युगे, त्यागः पाणितले सुधीश्च हृदये Naसोनाग्यशोना तनौ ॥ कीर्तिर्दिकु सपढ़ता गुणिजने यस्मान्नवेदंगिनां, सोऽयंवां नितमंगलावलिकते
धर्मः समासेव्यताम् ॥ १ ॥ अर्थः-हेनव्यजनो जेधर्मश्री घरने विषे लक्ष्मी, मुखमां सरस्वती, INDI बन्ने नुजानेविषे शौर्य, हस्तयुगलनेविषे दान, हृदयनीअंदर सुंदर बुद्धि, शरीरने विषे सौन्नाग्य शो-INE
ना, दिशाओनेविष कीर्ति, अने गुणवान पुरुषोनेविषे पक्षपात थायमे, ते आधर्मनुं वांबित मंगलNaमाला माटे सारे प्रकारे सेवन करो ॥ १॥ पूआ जिगंदे सुरश्व एसु, जूतो असामा अपो सहमी
॥ दाणं सुपत्ते नमणं सुतित्थे, सुसाहु सेवा सिवलोय मग्गो ॥३॥राजा अवसर पामी कर।, करा Nalजोमी हो पूजे तिशिवार ॥ किणकारण मुजसुत अपहयों, किण मुजने हो कह्यो एह विचार ॥ स IE ॥ १७ ॥ गुरु नाखे केत्रविदेहमें, दोए ना हो रहे अधिकसनेह ॥ स्त्री ज्येष्टनी स्नेहलासती, प्रिय सापांखे हो न शके रहि जेह॥स ॥१०॥ मोटे कारज पण नाहने, जावा न दिए हो घरथी ते नार प्रियतमविण प्राण रहे नहि, जिम माठी हो न रहे विणवार ॥ स ॥१॥ देखी स्त्रीनो नेह
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