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________________ वीश० ॥११५॥ ॥ ढाल ६ वी ॥ नीदरमी वेरण होइ रही ॥ ए देशी ॥ प्रमिततेजनिज तनणी, प्रतिबोध्यो हो सुललित वयरोह || सयल सुख पुण्यें पामियें, राणी भुवनकांता मूकावीने, आपी आपी हो सागरने लेय ॥ स० ॥ १ ॥ पुण्ये पुगें हो सघली मनप्राश | लहियें लहियें हो सघले जसवास ॥ स० ॥ वारू वारू हो धरणी सुवास, पीहर श्री कनमालाजणी, बोलावी हो सागरें तिथिवार | सागर सुखसागर रमे, आठ नारी हो । अपवर अनुहार | स० ॥ २ ॥ पंचविषयतणां सुख भोगवे, नवि जाणे हो नदयास्त किवार ॥ दीघी विद्या विद्याधरें, देश देश हो आदर सत्कार ॥ स० ॥ ३ ॥ परणी विद्याधरनी सुता, वीजी पण हो गुणरूपनिधान ॥ स० ॥ जरियाने सहु को नरे, सुखियाने हो सहु आप मान ॥ स ॥ ४ ॥ तिहां चैत्य जुहारे शाश्वता, स्नात्र महोत्सव हो करे नित्य अपार ॥ स० ॥ निज् मनुज जन्म सफलो करी, साधे साधे हो तीनवर्ग कुमार | स० ॥ ५ ॥ सागर वयरागर गुणतणो मनमांहे हो इम करे विचार ॥ सं० ॥ जइएं हवे पुर पोतातले, जइ जोनं हो नयो परिवार ॥ स ॥ ६ ॥ विद्याधर श्रेणी सेवीज तो, चाल्यो चाल्यो हो सहुसुं करि शीख ॥ स० ॥ सुर जिम सुविमाने बेशिने, सोहे प्रभुता हो जाणे इंइसरीख || स० ॥ ७ ॥ निजनगर समीपे आवियो, मन| मांहे हो धरतो नल्लास || स० ॥ निजतातने दीधी वधामणी, पूगी पूगी हो मनकेरी आश ॥ स ॥ ८ ॥ शागार्थं नगर सोहामणुं, शणगारी हो सघली बजार || स० ॥ दय गय रथ पायक परिवरयो, नप आव्यो हो सामौ तिशिवार ॥ स० ॥ ए ॥ नतरियो कुमर विमानश्री, तात केरे हो २८ ॥११५॥ लागो वली पाय ॥ जननीपाय लागो वली, हश्मासूं हो लेइ हर्ष अपार ॥ ० ॥ १०यावी वहुयर पाए पी, सासुने हो मन धरिय जगीस ॥ पुत्रवंती बहु थाजो तुमे, इम दीधी हो सासू आशीष ॥ ॥ ११ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान० www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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