SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीश ॥ ११६ ॥ XXXKK आकरो, तेहने वश यो कंतसुजाण ॥ जिनहर्ष स्नेह जिहाँ घलो, पामे पामे हो तेहथी दुख प्राण स्थान ॥ स० ॥ २० ॥ सर्वगाथा ॥ १६२ ॥ ॥ दोहा ॥ गृहकार्यार्थे अन्यदा, लघुत्राता कहे गाम ॥ जाइ तुमारे चालवुं, तुमविण न सरे काम ॥ १ ॥ प्रतिबोधि निजनारिने, ज्येष्ट चल्यो तिथिवार ॥ अनुज परीक्षा कारणे, वचन कहे अविचार ॥ २ ॥ नानी सांजल बातमी, तीव्ररोग थयो तत्र ॥ जर्चा मूवो ताहरो, दुवो सबल अखत्र ॥ ३ ॥ देवर वचन सुखी करी, करवत सरिखां तेह ॥ तत्क्षण प्राण तज्या तिथे, ऐ ऐ निबिरु सनेह ॥ ४ ॥ स्नेही मही विलोइएं, स्नेही तिल पीलाय ॥ निःस्नेहिने दुख नहि, खोल तक्रने न्याय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल 9 मी ॥ कलालकीना गीतनी ॥ ए देशी ॥ सुजाण नर || पश्चात्ताप करे घणो रे लाल, लघु जाता तिशिवाररे ॥ सु० ॥ एवो राग नारीतणो हो लाल || नवि दिसे संसार ॥ सु० ॥ १॥ वचन विचारी बोलियें रे लाल, वाघे नहि अपवाद ॥ सु०॥ प्रविचारयुं श्राए दुखजली हो लाल ॥ थाए थाए मनविषवाद ॥ सु० ॥ २ ॥ व० ॥ आव्यो केटलेक दिने हो लाल, ज्येष्ट बंधव निजगेह ॥ सु०॥ लघुबंधव सदु दाखव्यो हो लाल || शोकातुर यो तेह ॥ सु० ॥ ३ ॥ ० ॥ नारीस्नेह दृश्ये दहे हो लाल || रोवे करी विलाप ॥ सु० ॥ तीव्रदुखें करि पी मियो हो लाल || मोह महासंताप ॥ सु० ॥ ४ ॥ व ॥ वैर कियुं मुजसुं इयें हो लाल ॥ शुं कीजें जगदीश ॥ ० ॥ लघु बंधव नपरे घणो दो लाल ॥ द्वेष घरे निशदीश ॥ सु० ॥५॥ तेने बोलावे नहि हो लाल । तेहसूं त्रुटो स्नेह ॥ सु० ॥ जोजन न करे तेहसुं हो लाल ॥ वाध्यो कोप प्रवेह || सु०६० अनुक्रमें मोह वैराग्यश्री हो लाल, श्रयो तापस वृद्धप्रात ॥ सु०॥ मिथ्यादृष्टि ६४ ॥ ११६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy