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दमणां तेनी केमे, सैन्य नृपश्व देत जी ॥ अपरामाय पापणिनुं मूक्युं, हावा जाणे प्रेत जी ॥जू० ॥ २० ॥ गुरुनी वाणी अमिय समाली, शेठ धनेश्वर ताम जी ॥ गुप्त करी भूमिगृह मांहे, अरिहंत रक्षा काम जी ॥ जू० ॥ २१ ॥ मध्यान्दे गुरुनाषित आव्युं, सैन्य प्रगण्य अपार जी ॥ शोध्यं नगर कुमर न लाघो, फिरी गयुं तिथिवार जी ॥ जू० ॥ २२ ॥ मेरुप्रन रलियायत थने, नमी करी गुरुपाय जी ॥ कहे जिनहर्ष तमे सकुरुजी, टाल्यो मुऊ अपाय जी ॥ जू० ॥ २३ ॥ | सर्वगाथा ॥ २३ ॥
॥ दोहा ॥
दिदि में, सहुने वल्लन जेह ॥ तुमरो हुँ किम अनृणी, थाइश कहो प्रभु तेह ||१|| गुरुनाखे महाभाग सुण, तदा नृणी होय ॥ सद्दर्शन सूं आदरे, जो जिनधर्म सजोय ॥ २ ॥ पुण्योत्सव कारज करी, धर्म दिपावे जेह ॥ नक्ति करे सुकृत तणी, कृतज्ञ कहियें तेह ॥ ३॥ पामे ऐश्वर्य धर्मश्री, सेवे धर्म जे कोय || तेह कृतज्ञ शिरोमणि, तेहने बहुफल होय ॥ ४ ॥ श्रावकधर्म समाचरर्यो, दर्शनसहित कुमार ॥ मेरुमन बानो थको, तिदां रहे सुविचार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल १ जी ॥ चोपाइ ॥
हवे अरिदमन राय तिलीवार, रुजाक्रांत तनु थयो अपार || शांतिपुरें जाण्यो कुमार, राजा बोलाव्यो तिथिवार ॥ १ ॥ आव्यो तिहांथी नृतावलो, देखी राय थयो गलगलो ॥ राजा देवा मांड्यो राज, कुमर कहे माहरे नहि काज ॥ २ ॥ माता मनोरथ पूरो आज, महासेनने आपो राज ॥ ढुं करिश सेवा एदनी, शंका मत प्राणो केदनी ॥ ३ ॥ तत्क्षण मेरुमनने राज, दीघुं महासेन युवराज ॥ पोते लीधो संयमनार, मुनिवर पाले सतर प्रकार ॥ ४ ॥ समता शील थया
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