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________________ वीश ॥१२५॥ तेलीए पुण्योदयश्री ते आगल, दाख्यं सयल स्वरुप जी ॥ पुण्यप्रवर त्रिभुवनमां मोटुं, पुण्य रयण अनूप जी ॥ जू० ॥ ६ ॥ रन वन शत्रु जलधि जलमांहे, पावक विषमे गम जी ॥ राखे पुण्य प्रबल बलवंतुं, पुण्यें सीके काम जी ॥ जू० ॥ ७ ॥ अपररूप करिने तिहांथी, बीक घरी मनमांदे जी ॥ खमग पाणि लेइने चाल्यो, देशांतर अवगाह जी ॥ जू० ॥ ८ ॥ दिशा प्रतीची चलतो पोतो, केटलेक दिने कुमार जी ॥ लक्ष्मीधाम शांतिपुर नामें, सुरपुरनो अवतार जी ॥ जू० ॥ ॥ | तेमांहे जिन चैत्य अनोपम ॥ शांतिनाथ सुखकार जी ॥ कंचनवरणी मूरत तेमां, दीपे तेज अपार जी ॥ जू० ॥ १० ॥ निसी कहीने मांहे पेगे, जलशुं करी पखाल जी ॥ पुष्प सुगंधे पूजा कीघी, आणी जाव विशाल जी ॥ जू० ॥ ११ ॥ करी प्रणाम जिनेश्वर चरणे, कर जोकी वे ताम जी ॥ स्तोत्र विचित्रे स्तवना कीधी, गाया जिनगुणग्राम जी ॥ ज० ॥ १२ ॥ त्यारपढी ते जगती शोना, देखे बाहिर प्राय जी ॥ दीगदुरितापद अपहारी, अजयघोष मुनिराय जी ॥ जू० ॥ १३ ॥ कुमर अनाथनाथपय प्रणमी, बेगे मुनिनी पास जी ॥ शर्मद्रुम पीयूष समासी, ये देशना नल्लास जी ॥ जू० ॥ १४ ॥ श्रीजिननाषित धर्म जीवने, अपूर्व सुरवृकजी ॥ स्वर्गतणां सुखने शिवसुखनां, फूलनो दाता दक्ष जी ॥ जू० ॥ १५ ॥ अथवा चिंतामणि सारिखो, द्ये सर्वारथ शर्म जी ॥ एह निधान सयल सुखकेरुं, सर्वज्ञादेश शर्म जी ॥ जू० | ॥ १६ ॥ धर्मेण कण कंचन लहियें, धर्मे नर सुर काम जी ॥ धर्म मुक्तिनां सुख पण आपे, धर्म 1 करो अभिराम जी ॥ जू० ॥ १७ ॥ एहवुं कही गुरु श्राश्वर्गने, जाखे ज्ञान प्रमाण जी ॥ नावी तीर्थकर ए जालो, राजनसुत गुणखाण जी ॥ जू० ॥ १८ ॥ शासनतलो प्रजाविक थाशे, गोपवी राखो एह जी ॥ जिम जाणे नहि बीजो कोइ, रहे अखंमित देह जी ॥ जू० ॥ १७ ॥ श्रवशे **DOCX Jain Educationa International For Personal and Private Use Only स्थान ॥१२५॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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