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॥ ढाल ५ मी ॥ आदर जीव कमा गुण आदर || ए देशी ॥
स्तवन कहे हवे कुमर इसी परे, जय जय शांति जिणंदजी ॥ चिदानंदमय स्वामी प्रनो मम आपो परमानंद जी ॥ स्तवन ॥ १ ॥ विश्वसेन नरपति कुलदिनकर, अचरा नर श्रीहंस जी ॥ मनवांबित पूरण वर सुरतरु, वान वधारण वंशजी ॥ स्तवन ॥२॥ तुज आणा धारे जे मस्तक नावे त्रिभुवन नाराजी ॥ तिहने मस्तके सुरनर सघला, धारे प्राण प्रमाणजी ॥ स्त०॥ ३॥ पामे जोग रोग दुखवर्जित, पामे संपति सारजी ॥ तेनुं सुजस कपूरती परे, व्यापे जगतमोकारजी ॥ स्त० ॥ ४ ॥ ताहरी भक्ति फलित मुक्तामय दृढगुण सहित मोकार जी। हारती परे जास विराजे, वक्षस्थल वरनारजी ॥स्त || शा तुज स्वरूप ए सम्यकनावे, ध्यावे हृदय मोकार जी ॥ विश्वत्रय ऐश्वर्यती प्रभु, पदवि लहे निरघा - रजी ॥ ० ॥ ६ ॥ तन्मय मन श्राये जे नरनुं, कीर नीर जिम जोयजी ॥ ते निवें सुकृति नर कहियें, आसन सिद्धिक होयजी ॥ स्त० ॥ ७ ॥ सकल विश्वतम दूर गमावण, तुं प्रभु अर्कसमान जी ॥ गुण आगर सागर करुणानो, ताहरू निर्मल ज्ञान जी ॥ स्त || || आस्रव निवारण तारण जगनो, शांतिकरण शिवसाथ जी || शांति जिनेश्वर द्यो परमेश्वर, निजपदवी जगनाथजी ॥ स्त ॥ एए ॥ शांति कांति नासुर जगदीश्वर, स्तवना कीध विचित्र जी । भारती देवी कुमरे दीठी, मंगल मांहे तत्र जी ॥ स्त० ॥ १० ॥ कुमर विचक्षण लक्षण धारक, कोविद वचनविलास जी ॥ नमस्कार करी देवीने, स्तवना करे उल्लास जी ॥ स्त० || ११ || काव्य नाद वे पक्ष करीने, विचरे भुवन अतीवजी ॥ देवी सरस्वती हंसी माहरे, मानस सरमां सदीव जी ॥ स्त० ॥ १२ ॥ काव्य करे नर तुज सुपसायें, तुज सुपसायें बुद्ध जी ॥ मूरखने पण पंकित प्रभुता, आपे ज्ञान विशुजी ॥ स्त० ॥ १३ ॥ तुं महामाइ तुं वरदा, तुं विश्वमांहे विख्यात जी ॥ ताहरा
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