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________________ वीश ॥७६॥ गुण सुरनर विद्याधर, सेवे त्रिभुवनमात जी ॥ स्त ॥ १४ ॥ स्तुति सुधास्वाद सारीखी, कीध । कुमरसुजाणी जी ॥ प्रसन्न या हंसासणि देवी, वर दीधुं कहे वाणी जी ॥ स्त॥ १५ ॥ शांतिमति कन्या परीने, मैत्री परमाल्हाद जी ॥ थाजे विद्याधरनो स्वामी, जोगवि जोगसवादजी ॥ स्त ॥ १६ ॥ निकलियो शांतीश्वरगृहथी, आगल दीवी अनूप जी ॥ शांतिमती कन्या गुणवंती, लावण्यामृत रूप जी ॥ स्त० ॥ १७ ॥ कुमर जमर चिंते मनमांहे, में दीठी नद्यान जी ॥ हृींचोले दींचंती रमती, सुरकन्या अनुमान जी ॥ स्त० ॥ १८ ॥ ते कन्या सुखसर्वस्व जीवित, पृथ्वी| मांहे प्रधानजी ॥ वर साधुं सरस्वतिमातानुं, श्रयुं जिनहर्ष निदान जी ॥ स्त ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ हवे कुमर मन चिंतवे, धन धन खेचर तेह ॥ नपकारी मुजने थयो, कूपक नाख्यो जेह ॥ १ ॥ उत्तम अवगुण नवि गृहे, अवगुण गुण करि लेय | अगर अग्निमां बालतां, निजगुण प्रकट करेय ॥ २ ॥ पूरव पुण्योदयथकी, आायो इणिवनमांहि ॥ श्री जिन श्रीदेवीतणा, दर्शन श्रयां नगं हि ॥ ३ ॥ कन्या पण दीठो कुमर, कामदेव साक्षात् ॥ परम प्रीति वाधे हिये, रोमांचित श्रयुं गात ॥ ४ ॥ कुमरी अमरी सारिखी, अनिमिष नया निहाल | वर दीधुं परमेश्वरी, त्रिभुवन मांहे टाल ||५|| ॥ ढाल ॥ ६ ठ्ठी ॥ राजाजी ने पूवे जीलमी रे ॥ ए देशी ॥ लक्ष्मी वनश्री लेइ करीरे, नवलां चंपकनां फूलके ॥ कुमरी मन मोही रह्युं रे, गुंथी निजहाथे चूंपसुं रे, मन मोहन माल अमूल के || कु० ॥ मीग वचन सुधारस वांचतां रे, वाधे मन प्रीत विशेष के || कु० ॥ १ ॥ निज धात्री हाथे मोकल्यो रे, ते माला कागल ताम के || कु० ॥ कुमरे वांच्यो मनरंगसूं रे, नलस्यो मनपरिणाम के || कु० ॥ २ ॥ वैताढ्य दक्षिण श्रेणे जलो रे, शिव Jain Educatura international For Personal and Private Use Only XXXX स्थान० ॥७६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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