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वीश
॥३७॥
ADDE
शारीरीक शोजाना रजोगुणथी के कीर्ति वधे ते आदि हेतुप्रथी, दुःखथी, कौतुकश्री के रमुजी थी, कोइ कोइ विस्मय आश्चर्यथी, व्यवहारथी, जावथी, के कुल परंपराना आचारथी, अने वैराग्यश्री निर्मल धर्मनुं सेवन करे बे, तेमने अप्रमेय (मली शके नहि ते अपार) फल मले बे. पूर्वढाल ॥ धर्म सुण्यो दीठो पण जोइ, कृत कारित अनुमोदित हो || राजा सुलि पावन करे एह, आसप्तम कुल नहिं संदेह ॥ ६ ॥ सांजलि मुनिनी देसा सार, मनमां हरख्यो राय अपार ॥ करजोमी मोमी निजगात, पूरव नवनी पूबे वात ॥७॥ पुण्य कीयुं पूरवजव किशुं, राज्यतणुं सुख पाम्यो इश्युं ॥ ए रमणी ए लील विलास, जेहथी पूगी मननी श्राशा। गुरु कहे ताहरु निसु वृत्तंत, नंदनपुर शंख इन्य रहंत ॥ तासघरें तेनो तुं दास, नंदन नामें उत्तम वास ॥८॥ विकसित अंबुज व्रज संघात, गृहप्रत्ये दीगे तुजनें जात ॥ तेह | कमल देखी गहगहे, चार कन्या तुजनें इम कहे || || कमल विमल सौरन संभार, एहनें हस्त कमलबे | सार ॥ अरिहंतनी पूजानें योग, एह कमलनो थाये जोग ॥१०॥ शांतात्मा सुरा वचन विलास, नंदन वचनो जाखे तास ॥ जलुं नलुं तुमें बोल्याएह, एह वचनशुं अधिक सनेह ॥ ११ ॥ अंघोली तनु निर्मल एह कीयो, कन्या वचनें प्रति प्रेरियो || श्री जिनवरनी पूजाकरी, निर्मल नाव हृदयमां घरी ॥ १२ ॥ बीज सुठामें वाव्यं यथा, जल सुवायुनें योगें तथा सहस्र गुणुं जिम वाधे धान, तिम नांवें पूजा सुप्रधान ॥ १३ ॥ यतः ॥ श्रेयस्तनोति दुरितानि निराकरोति, लक्ष्मीं करोति शुनसंचय मात नोति ॥ पूज्यत्वमानयति कर्मरिपून्निदंति, पूजा जिनस्य रचिता निजभावसारं ॥ १ ॥ अर्थःजेम बने तेम पोताना उत्कृष्ट जावधी रचेली ( करेली ) श्री जिननी पूजा, कल्याणनो विस्तार करेबे, पापनुं निराकरण करेबे, लक्ष्मीनी वृद्धि करेबे, पूण्यसंचयनो वधारो करेबे, पूजनीयपणुं प्रपे बे, अने कर्मरूप शत्रुओने इले बे. ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ करि तास अनुमोदन रही, कन्या चारे मन
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DODON
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स्थान
॥३७॥
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