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________________ गहगई ॥ तिरों पुण्यें नृप थयो विचार, चार थइ ए ताहरी नार ॥ १४ ॥ अल्पधर्म पण जाव सहित, जो कीजें करीरी निर्मल चित्त ॥ परजव पामे सुखनी श्रेया, त्रिभुवन पूजा लहे गुण तेा ॥ ॥ १५ ॥ गुरुनां वचन सुखी ततखेण, जाति समरण पाम्यो तेल || पाम्यो तत्क्षण नृप संवेग, गुरु वांदी श्राव्यो घर वेग ॥ १६ ॥ पद्मशेखर नामें सुतजेह, निजपाटे थापी लेई तेह | सहु चैत्य जे जिनवर तरणा, की अठ्ठाइ महोत्सव घणा ॥ १७ ॥ दीक्षा लीधी दयिता साथ, करी महोत्सव गुरुनं हाथ || जलिया रिखी इग्यारह अंग, विधिशुं हृदय घरी नवरंग ॥ १८ ॥ निजगुरुपासें सुयो विचार, ज्येष्ट भक्ति जवफल तिथिवार ॥ वय पर्याय सूत्रार्थ गरीष्ट, तपसीनी करे भक्ति विशिष्ट ॥ ॥ ११५ ॥ बोकी कपट निपट अहंकार, तेहनें थाये लान अपार || क्लिष्ट कर्म निःशेष पखाल, निर्मल आत्मा करे ततकाल ॥ २० ॥ नच्चैर्गोत्र आस्वादी स्वच्छ, पामे तीर्थकर पद लबि ॥ अजर अमर स्थानक ते लहे, कहे जिन हर्ष सुगुरु इम कहे ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥ सांजलि मुनिवर एह, हृदय घरी बहु प्रीत ॥ लीधो अनिग्रह एहवो, मुनिवर चोखे चित्त ॥ १ ॥ प्रथम ज्येष्ठ अणगारनी, जोजन भक्ति करेह ॥ त्यार पटी जोजन करूं, निश्चय एम धरेह ॥ २ ॥ नक्ति यथाशक्त करूं, मुनिवर तणी विशेष ॥ अन्न पान औषध प्रमुख, जीवुं तां निःशेष ॥ ३ ॥ यति प्रशंसा सदु करे, गुरु पण करे प्रशंस ॥ धन्य धन्य महानाग्य तुं, तें नजवाल्यो वंश ॥ ४ ॥ गतिसारी मति तुज ती, जली नपनी एह ॥ आपे गुरु आदर घणो, वाघे गुणें सनेह ॥ ५ ॥ ढाल पांचमी ॥ सुमेरी सजानी रजनी न जाये रे ॥ ए देशी ॥ जे जे वे मुनि गुजरीया रे, ज्ञान चारित्र दर्शन दरीयारे ॥ वचसा तपसा श्रुत संपूरा रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ODDE XXXDDDDD www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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