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________________ स्थान वीशगृहस्थ वखाणरे ॥ कण् ॥ ५ ॥ देशना गुरुतणी सांनली, नृप थयो प्रतिबुझ रे ॥ आदरयो जिनधर्म नावें, बार व्रत मन शुक्ष रे ॥ क० ॥ ७ ॥ बोधबीज वधारवाने, ॥१२॥ करे जिननी नतिरे ॥ मिथ्यात्वी पण देखी मनमें, य जाये रक्तरे॥क ॥ ७॥ नावना जिन Raशासन केरी, कीधी राय अपार रे ॥ तिहाथकी मुनिराय विचर्या, अप्रतिबंध विहाररे ॥ क ॥७॥ नगरे नगरे गामे गामे, बुझवे नर नार रे ॥ वेलापुर समवसरीया, साधुने परिवार रे॥ कण्॥॥ नव्यने नपदेश आपे, वाणी अमृतधार रे ॥ देवी लक्ष्मी शुइ समकित, पामीतिहां तिणीवार रे॥ Salक ॥१०॥ सूरि आगलें तदा कीधी, रत्ननी तेणे वृष्टि रे ॥ शासनोन्नति तणे हेते, धरी प्रीति Salविशिष्ट रे ॥ कण् ॥११॥ रत्नवर्षण तदा देवी, नूमी वनमें कीध रे ॥ त्यारश्री श्र रत्नगर्ना, नाम salएह प्रसिःहरे ॥ क० ॥१२॥ अरिदमन राजा सांजली, नदय सुगुरु प्रन्नाव रे॥ तिहां आवी चरण प्रणम्या, गुरुतणा गुरु नाव रे ॥ क० ॥१३॥ देशना तिहां सुगुरु दीधी, राय आगल ताम रे॥ कनककमलें बेसी अद्भुत, रुपसंपदधामरे ॥ कण ॥१५॥ चार अंग सरंग लहेता, दोहीला जिम जाणी रे॥ चारगतिमें मनुष्यनी गति, दोहीली गुरुवाणीरे ॥ कण ॥ १५॥ दोहीली तिम वली श्रःक्ष, धर्म नपरे रंग रे ॥ वली 5ष्कर धर्म करवो, तजी आलस अंग रे॥ क० ॥ १६ ॥ एह चारे Balअंग पामी, तजी पंच प्रमाद रे ॥ करो धर्म जिनेनाषित, टले नव विखवादरे ॥ कण् ॥ १७ ॥ धर्म चिंतामणि सरिखो, कांश हारो बाल रे॥ एह अवसर नहीं आवे, हिये शोची निहाल रे॥ क० ॥ १८ ॥ देशना अमृत समाणी, सांजली नरराय रे ॥ बार व्रत सम्यक्त्व साथे, आदर्यां चित लाय रे ॥ क० ॥ १५ ॥ तिहां कवीश्वरतणी श्रेणी, नयप्रमाण तत्व जाण रे॥ तेह गुरु प्रति ॥१३॥ Jain Education Ternational For Personal and Private Use Only www.jalneltorary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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