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जिनचंद ॥ तसु प्रतिमा रोपी ध्याइयें, ध्यान रुपस्थ हिये नावीयं ॥ एए ॥ परमानंद मही आतमा, सिद्ध, निरंजन परमातमा ॥ ध्यावे परमयोगीश्वर जेह, रुपातीत ध्यान गुणगेह ॥ १० ॥ ध्यानविधि श्रुत जेह सुजाण, ध्यानना ध्येय तथा फल जाए ॥ सामग्री विल सिद्ध न श्राय, कार्य | किवारे सुनाय ॥ ११ ॥ इंडिय सहित स्वमानसप्रतें, विषयथकी पांचे सस्मते ॥ धर्मध्यान काजें शुनमति, मन निश्चल राखे तेवति ॥ १२ ॥ विरति काम जोग स्वशरीर, परब्रह्मैक थाय जल खीर | स्वदेहस्थे इम ध्यावे सदा, शुद्ध नपाधि रहित मन मुदा ॥ १३ ॥ हृदयांनोजे थापी करी, परमेष्टीना पद मन धरी ॥ लयलीन श्रइ तेहसुं, ध्यावे इली परे बहु नावसुं ॥ १४ ॥ अरिहंत सघला कर्म विमुक्त, आठ प्रातिहार्यसुं युक्त ॥ केवलज्ञानी दिनकर स्वामि, समवसरण बेटा सुखधाम ॥ १५ ॥ ध्यानालंबन तेहनुं करे, अथवा जिनमूरति चित धरे ॥ निजमन थिर करी ध्यावे सदा ॥ सयल विकल्प तजी मन मुदा ॥ १५ ॥ सम्यक योगतणो अग्रणी, सध्यावे |परमात्मानणी ॥ नाथ निरंजनने निराकार, चिदानंद प्रभु जंगार ॥ १७ ॥ प्रबन्न पापतली शुद्धि होय, आधि व्याधि व्यापे नहि कोय ॥ परजव परमैश्वर्य लहाय, ध्यानपदस्थ थकी सिद्धि श्राय ॥ १८ ॥ अतीत गीतारथ अष्ट समृद्धि, ज्ञाता नर एहवो सुप्रसिद्ध || नाद बिंदु वपुशुद्धि सं| जोय, पिंमस्थ ध्यानयोगश्री होय ॥ १७ ॥ रूपस्य ध्यान लीनात्मा दमी, क्लिष्ट कर्मक्षयश्री उपशमी ॥ केवलज्ञान हे प्राणियो, राय पुण्याढ्य परे जालियो || २० || मूकी करी विकल्प कषाय, ध्याता रुपातीत पद् ध्याय ॥ चिदानंदमय थाए सहि, रूपाकार जिहा गुण नहि ॥ २१ ॥ जिम उत्तम श्रावक जे होय, ए थानक आराधे सोय ॥ तजे प्रमाद रागने द्वेष ॥ सामायिक व्रत करी
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स्थान०
॥॥॥॥
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