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विशेष ॥ २२ ॥ त्रसने स्थावर प्राणी रास, सर्वभूतं समता जास ॥ तेहने सामायिक दाखियो, केवली जिनदर्ष जाखियो || २३ || सर्वगाथा ॥ ३१ ॥
॥ दोहा ॥
जन्म लकनां पाप जे, नम्रतपें न खपाय ॥ समरसमें मन राखतां, खिरामे खेरू थाय ॥ १ ॥ शुक्ललेश्या शुद्धतमा, शुभध्याने सुप्रेम ॥ तीर्थंकर लक्ष्मी लहे, हरिवाहन नृप जेम ॥ २ ॥ ॥ ढाल २ जी ॥ दान नलट घरी नवियण दीजियें || ए देशी ॥
पुण्य संकेतपुरवर तिलो, सुरनरने अनुहार रे ॥ ऋद्धि समृद्धि सुमरे नस्यो, सज्जनने सुखका - ररे ॥ पु० ॥ १ ॥ तिहां हरिवाहन राजीयो, तेज प्रताप दिनराय रे ॥ हरि जिम अरि मृग नाजिया, निपुण निजमुख करी न्याय रे || पु० ॥ २ ॥ मेघवाहन युवराजियो, राय लघु जात रा. धीर रे ॥ विदुष विद्वेषी जली जे करे, सर्वदा यादर वीर रे ॥ ५० ॥ ३ ॥ नरपतिसें वश श्रइ रह्यो, नाना कीमारस स्वादरे ॥ धर्म न करें नृप भाषियो, निशदिन सेवे प्रमादरे ॥ पु० ॥ ४ ॥ अन्य दिवस तिहां श्राविया, चनज्ञानी गुणनूरिरे ॥ नव्यकमल दिनकर समा, शीलननामें सूरिरे ॥ पु० ॥ ५ ॥ मेघवाहन आव्यो वांदवा, सूरिजी सुविनीतरे ॥ शेठ सामंत व्यवहारिया, श्राविया धर्मनी रीतरे || पु० || ६ || दशावर्त्त देश वांदला, बेग गुरु यागले आइ रे ॥ तेटले धर्म देसा दीए, पहुचवा मुक्ति नपाय रे ॥ पु० ॥ ७ ॥ तेटले भवितव्यता वशे, तुरंग रमाववा काजरे ॥ राजा जातो तिहां आवियो, सांजली वाली घनगाज रे || पु० ॥ ८ ॥ वाजिकीमा तजि ततखिणे, | विस्मितात्मा नरनाह रे || आवी विनयसुं गुरुतला, नम्या पदकमल नृत्साह रे ॥ पु० ॥ ए ॥ मधुर अमृतरस स्त्राविणी, सगुण वाली सुविशेष रे ॥ जव्य प्राणी हितकारणे, सुगुरु आपे उपदेशरे ॥
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