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| सनेह ॥ ० ॥ ११ ॥ हुं प्रणुं दिन सात मोजार, तुजपुत्री राजन श्रवधार ॥ म ॥ नृपागल ए प्रतिज्ञा कीध, राजा जाएयुं कारज सीध ॥ ० ॥ १२ ॥ विश्वस्वामीनी विद्या ध्यान, प्रसन्न करीने रच्युं विमान ॥ म० ॥ ते उपर बेसी तेलीवार, कन्यास्थानक गयो कुमार ॥ म० ॥ १३ ॥ वैताढ्य पर्वत रंगरसाल, गंध समृद्धि नगर सुविशाल ॥ म० ॥ परनारी लंपट मन कूरु, दुराचार खेचर मणिचूक | म० ॥ १४ ॥ करी नंदीश्वर पर्वतजात्र, पाठो वलीयो तेह कुपात्र ॥ म० ॥ मंदिर नपरें आव्यो रे जाम, कन्या रमती दीठी ताम ॥ म० ॥ १५ ॥ घाली विमान लइ गयो बाल, तिहां पुरंदर गयो तत्काल ॥ म० ॥ ततखिण आणी राजकुमार, नृप नपजाव्यो दर्ष अपार ॥ म ॥ १६ ॥ राजसुता देखी वर तेह, पाणी ग्रहणानो थयो सनेह ॥ म० ॥ राजा राणी पुगी प्राश, परणावी निजपुत्री तास ॥ म० ॥ १७ ॥ कुमर पुरंदर प्रत्यक्ष काम, कुमरी रतिरूपें गुणधाम ॥ म० ॥ नाग्य संजोगे सरखी जोड, विधि जोमी मत लागो खोड ॥ ० ॥ १८ ॥ लोक कहे ए नर पुण्यवंत, तो ए कुमरीनो थयो कंत ॥ म० ॥ कुमरीनुं पण वाध्युं सौभाग्य, जिस ए वर पामी | महानाग ॥ ० ॥ १७ ॥ पुण्यथकी अधिकं नहीं कोय, पुण्यतणां फल प्रत्यक्ष जोय ॥ म० ॥ पुण्यथकी परीगल ऋद्धि होय, पुण्यें माने सघलां लोय ॥ म० ॥ २० ॥ घरथी काढयो राजकुमार, पुण्यें पाम्यो ऋद्धिपार ॥ म० ॥ पुण्यतणां फलनो नहीं अंत, कहे जिनदर्ष पुण्य बलवंत ॥ म० ॥ २१ ॥ सर्वगाथा ॥ ११४ ॥
॥ दोहा ॥
राजा रहेवा प्रापियो, सप्तभूमि श्रावास ॥ सामग्री सह जोगनी, प्रिया सहित सुखवास ॥ १ ॥ जोग जोगवे पंचधा, पाम्यां नृपसनमान ॥ सकल मनोरथ पूरवे, लोकनी देश मान ॥ २॥ विद्या
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