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मांदे, गुलनी वाटी मेल्हो ॥ १६ ॥ बेहू एक पट नपर मूके नवि चूके ॥ यारार्तिक आागल, मृतिका मीतुं मूके ॥ कारक धारक बिहुँ, नावें उना थाये ॥ नपणेन मंगल पुष्प, वृष्टि करी बेसाये ॥ १७ ॥ कृष्णागुरुने घन, सार जागला लेइ ॥ जिनवरनें वाम, अंगे तेह धरे ॥ कारकनें हाथे, आपे लूए विशेष ॥ वार तीन तेहनी, वृष्टि करे सुविशेष ॥ १८ ॥ श्रहं पनिगा पसर, गाथा कही ए आठ ॥ लूस पाणी कारक, नच्चारे सूधो पाठ ॥ त्यार पटी आरती, पूजाविधि सुविचार | धारकनें नना, राखी कारक त्यार ॥ १७ ॥ इवामिखमासमणो कही जिननें वंदी || रात्रिक हाथें, आपे मन आनंदी || मरगय मणि घमिय, विशाल गाहात्रिक जाण ॥ जगतो दक्षिण, पाथी जिन परमाल ॥ २० ॥ फेरे वार अढी, उतारि माजागें ॥ मूकीजें त्यार पटी, मंगल लेवो रागें ॥ पूजी इच्छामि खमासमणो देइ वंदे ॥ धारक हाथे आपे, निज पाप निकंदे ||२१|| वली तिलक करीजें, फूलहार घालीजें ॥ लूंगणकां श्रीजिननें, धारकनें वली कीजें ॥ मंगलेंदी वो मांहें, मूकीजें घनसार ॥ कोस बीसंग्यि, स्सवि वे गाह नदार ॥ २२ ॥ ए गाथा जगतां मंगल दीप नतारे || स्नात्रोव इम करतां, शुजयतिने विस्तारे | ए स्नात्र तपोविधि, अल्प को उल्लासें, शास्त्रे बहुविधि बे, इम जिनहर्ष प्रकाशे ॥ २३ ॥
दोहा ॥
एम स्नात्र पूजा करे, जिनवर आागल आय ॥ चैत्यवंदन जावें करे, पांचे अंग नमाय ॥ १ ॥ | पदस्थ ध्यान शुद्धतमा, परमेष्टी नवकार ॥ नमो अरिहंताणं जपे, हरषें दोय हजार संपद पद चरण, संपूरण लय लाय ॥ चंदन कुसुम तंडुल करी, पूजे श्री जिनराय ॥ दंत पूजा करे, जक्ति सहित पट मास || वावित संपति ते लहे, पातक जाये नाश ॥
३ ॥ एम रि ४ ॥ फूल दीप
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॥ २ ॥ अथवा
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