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________________ शश स्थान Salगाथा एह कहे॥ एक कलशें करीय, पखाल संखेप पूजे ॥ विस्तारें जो पहिलां, पूज्यां होय नाह Sal निर्माल्यानरण, नतास्या विण गुण गाह ॥ ५ ॥ अंगुठे जिननें, करी पखाल पूजीजें, पठी कुसु॥५॥ मांजलि, प्रारंनी फल लीजें ॥६॥वली त्यार पठी एक, श्रावक थाल ग्रहे ॥ स्नात्र कारकना । Sal हाथ, शुचि जल धोवरावे ॥धूपावीने चंदन, सेती चरचीजें, तसु हाथ कुसुमांजली दे॥ नही रहीजें ॥ ७॥ नमो अर्हसिक्षा, चार्योपाध्याय गुणीजें,॥ पठी पवित्र नदक लेश, अंग पखालि sal नणीजें ॥ए गाथा कहि शिर, कुसुमांजलि मूकीजें ॥श्म सात वार कुसुमांजली प्रभुनें दीजें ॥ Nalu G॥ पठी तो प्रभुजीने जल, नो अनिषेक करीजें ॥ नमोर्हसिध्धा कही, विणयनयरी नच्चरोजें। शिरीषन्न जनम अनिषेक कलश ए जाणो ॥ नमोऽर्हत्सिदाचार्योपाध्याय वखाणो ॥ ए॥ एक श्रावक कलश धारकना कर धोवरावे॥वली अगर धूपावें, चंदनसुं चरचावे॥ तेह एक श्रावक, सुविधे alखमासण देई ॥ श्रीजिनवरने वली,श्रावक ते वांदे॥१०॥ जलनृत कलशापि श्रावकनें ले ॥ valअंतरपट ढांकी, हृदय आगल राखेई ॥ सहुने ए कलश देवानो विधि जाणेवी ॥ श्रेयः पल्लव ए, Valकाव्य मुखें आणेवी ॥११॥ इत्यादिक पाठ, कही एक कलशे धार ॥ जिम होय तिम पंचामृतनो ||RE करे पखाल ॥ पठी अनिषेक तोय, धारा ए श्लोक कहीजें ॥ एह कलश विशुइ धारानो अनिषेक Ial कीजें ॥१२॥ अंग खूदणे खूही, चंदन कुसुम पूजीजें, पठी आरति मंगलदीवो घृत कलश नरी-IVE sali ॥ माटी मी घी, कपूर गोल अचाएं॥ कुंकावटी ए सहु, वस्तु मेलीसुविहाणुं ॥१३॥ पहेली आरती मंगल, दीवो घृत पूरी ॥ प्रगट कीजें नव, नवनां पातक चुरी ॥ बिहुँ आगले कुंकु, केरोटी स्वस्तिक कीजें ॥ बिहुँ आगल ढगलो, चोखानो ढोईजें ॥१५॥ ते ढगला नपरें पूगीफल मूकी-| जे प्रतिमानी वाम, दिशे आरती धरीजें ॥१५॥ मंगल दीवो दक्षिण नागें दुःख ठेलो, मंगलदीवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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