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राह मूकी करी जी, शुचि अंशुक पहिरेह रे ॥ न ॥ १० ॥ जश्ये एहवं चिंतवीय जी, चोथNal तणुं फल होय ॥ नग्यो पामे उठनुं जी, अठम नद्यत जोय रे ॥ भ० ॥११॥ दशम तणुं चाल्यां
थकांजी, हादश चरण विचार, अर्ध मास मारग विचे जी, दीठे मास विचार रे ॥ न॥१२॥ salपोहोतो जिन नुवनंतरें जी, फल पामे षटमास ॥ जिनगृह मांहे पेसतांजी, संवघर फल तास रे॥ Nar ॥१३ ॥ आपे जाम प्रदक्षिणा जी, सो वरसां फल होय ॥ सहस वरस पूजा की जी, पूजो
ए फल जोय रे ॥ न ॥१३॥ मनें करी नपराजीयजी, पुष्य तणां फल एह ॥ तो प्रत्यक्ष पूजा sal थकीजी, पुण्य जिनहर्ष अव्ह रे॥न ॥१५॥
दोहा॥ जिनवर प्रतिमा पूजीये, पुण्य होय सो नपवास ॥ सहस्र विलेपन पामीयें, माला लक्ष सुवास॥१॥ गीत नृत्य आगल करे, थाये पुण्य अनंत ॥ स्नात्रोछवनो विधि हवे, कांक कही पावंत॥शा
___ ढाल पांचमी ॥ चाइ धन्य सुपन तुं, धन्य जीवी तोरी आजाण देशी | पूरव तथा नुत्तर, दिसे प्रनालीबाजोग ॥ बुधे करिऊपरें पूजी प्रतिमा गुणपोठ ॥ पंचतीर्थी तथा वीसवटो मांफीजें तिलकादिक
तलकाादक युक्त, अंग हर्षे धरीजे॥१॥ कृतस्नान पवित्र, श्रावक Caझावंत जेह, पट्ट धो शुचि जल करे, पवित्र गुण गेह ॥ ते नपरें मूके, चार कलश नृतनीर sal
माहे मेल्हे कुसुम, कपूर चंदन रस धीर ॥२॥ वर वस्त्र आबादी जे ते कलश सनूर ॥बे पासे sal balपाणी, केरी धारा पूर ॥ करिने नत रासण, धरि जयणासुं नेह ॥ नन्ना अश् श्रावक, गाथा पत्नणे व Pal एह ॥३॥ गंन्नीरस्वरें, मुक्तालंकार विकार॥ए आर्या कहिनें, नतारे अलंकार ॥ अवणीय कुसुमा,
हरणं निर्माल्य नतारे ॥ विधि जाण आगममें, विधि सघलोहि विचारे, ॥४॥ बालत्तण सामिय,
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