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________________ निजजाति नम्यो सुरवरजणी, मुकी प्रतिमा धर्मलान दीयो गली ॥ १ ॥ जाव धरी मुनि आगल बेगे राजीयो, घे उपदेश विशेष के जलधर गाजी यो। मीठी वाणी सरस के अमृत स्राविणी, जन्म मरण नवनीति अनीति विज्ञविली ॥ २ ॥ दुर्लभ पुष्प न्यग्रोध दुलह पय स्वातिनुं, दुर्लन मानुषजन्म नीरोगी जातिनुं || दुर्लन श्री जिनशासन धर्म जिदनो, दायक सुर नर ऋद्धि मुक्ति आनंदनो ॥ ३ ॥ कल्पद्रुम चिंतामणि दुक्कर पामतां, दक्षिणावर्त्त गवी सुर सुरघट कामतां । तेहथी पण महाराज न दुर्लभ जाणियें, त्रण तत्वनपर श्रद्धा जे प्राणियें ॥ ४ ॥ तत्र प्रथम सर्वज्ञ जिने - श्वर देवता, जेहने चोसठ इंड् सुरासुर सेवता ॥ अतिशय वर चोत्रीश जेहने दीपता, अष्टकर्म दलराग द्वेष नम जीवता ॥ ५ ॥ नववामे ब्रह्मचर्य महाव्रत पालता, चारित्रना अतिचार विचारी टालता | सावद्य सहु व्यापार तज्या पूतातमा, एहवा गुरुगुणवंत महातमा ॥ ६ ॥ दर्शधा धर्म कमदिक जिनवर जाषियो । शिवपदनो दातार सहु जग साखियो || एहवां तीने तत्व जिनागममां कह्यां, ए रत्नत्रय सम्यग् जावें सद्दह्यां ॥ ७ ॥ त्यारे नव परिपाक तेह नरने सही ॥ श्राये चारित्र योग वात जिनवर कही ॥ तत्र देशेने सर्व विरति चारित्र द्विधा ॥ श्राद्य गृहीने प्रोक्त जीसी मीठी सुधा ॥ ८ ॥ बीजुं चारीत्र सर्व विरति मुनिने हुवे, देश चारित्र आराध्य देव सुख अनु नवे ॥ सर्वविरति चारित्र थकी मुनिवर लहे, मुक्ति अनंतां सुख तिहां नित गहगहे || || निकषाय चा|रित्र मुहूरत पालतो, वैमानिक सुख अवश्य होये दुख टालतो || एहवी वाणी साधुतली श्रवणे सुणी, प्रतिबोध्यो नरराय पाय प्रणम्या मुली ॥ १० ॥ नवी निजगृह नूप चंपसुं वियो । पोतानो परिवार सहु बोलावियो || पद्मशेखर सुत राज्य महोत्सव थापियो । आदिवस जिननक्ति करी जव कापियो ॥ ११ ॥ श्री मनसूरि समीपे संयम आदरयो । समिति गुप्ति प्रतिपाल नाव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600177
Book TitleVissthanakno Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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