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यो सुपात्रेन्यो दानं यध्वस्तुनः॥ १॥ अर्थः--गृहस्थोना गृहस्थाश्रमधर्मनुं एज परम सार- स्थान
रुप फल कहेलु ने जे शुध्वस्तुनुं यथाशक्ति दान आपq. सारांश के सुपात्रने शक्ति॥७॥
प्रमाणे सारी वस्तु, दान आपq ते गृहस्थोना गृह धर्मनुं परम साररुप फल शास्त्रोमां कहेलुं ॥१॥ Salत्यारपठी ते साधुने रे, करुणा हृदय शुक्ष्मान रे ॥ विविध औषध घे नावसुं रे, दे आदर ने सन- sal समान रे ॥ श्री ॥१७॥ पण आन्ध्याने मरी रे, थयो वानरमाहे प्रधान रे ॥ पति पांचशे वानरी-NEL Sral तणो रे, वनकीमा करे असमान रे ॥ श्री० ॥ १७ ॥शल्य सहित मुनि देखिने रे, पाम्यो जाति--
स्मरण ताम रे।साधु दीठे पण जंतुने रे, थाए शिव सुख गम रे ॥श्री॥१णाप्राग्नवना अन्न्यास | माथी रे, औषध पाणी कपिराय रे ॥ बांधी मुख चावी करी रे, गतशल्य कीधो मुनिराय रे ॥ श्रीCall Salu ० ॥ नवसायरना दुखतयो रे, कांश तत्कण पाम्यो पार रे॥ कहे जिनह जुओ तुमे रे, कांश Balसाधु नक्ति गुणकार रे ॥ श्री० ॥२१॥
॥दोहा॥ Sal धर्म कस्यो रे आगले, मुनिवर पुण्य अगम्य ॥ महीमंगल पीयूषश्री, चंदन वरसे अन्य ॥१॥ valमुनिदेशनाथी पामियो, बोधिलान्न कपि ताम ॥ तीन दिवस लगि पालियुं, सामायिक व्रत पाम Aalu ॥ अनशन आराधी करी, मुनिवर हृदय प्रशांति ॥ त्रण पथ्योपम आवखें, सौधर्मे सुरकांति Italu ३ ॥ अवधीज्ञान प्रयुंजिने, दीगे मुनिवर तेह ।। गुरुपासे लश् मूकियो, पाल्यो धर्म सनेह Sanा निजस्वरूप देवें कडं, ९ वानर प्रन्नु सोय ॥ तुम सुपसायें सुर अयो, नमी गयो सुर लोय॥mins ना
॥ ढाल मी॥ नदी यमुनाके तीर नमे दोय पंखियां ॥ ए देशी। तिहांथी चवी श्रयो देव अरुणदेव तुं हां, पाम्यां ए सुख पुण्य न जाये कृत किहां ॥ संन्नारी
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