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वीसमता धस्यो । शांतिमती संवेग रसे संपूरिता, जितेंशिय ग्रहि दीख्ख कर्म बहु चूरतां ॥ १२ स्थान
हादशांग राजऋषि नण्या उलटघणे, स्थानकनां फल एक दिवस गुरुमुखें सुणे ॥ एकादश पद Na साधु सम्यग्नावें करी, ज्ञान अने नपयोगवंत नपशम धरी ॥ १३ ॥ त्रिधा शुःविधि आवश्यक किरिया करे, गणे नमो चारीत तीर्थकृत पद वरे ॥ आवश्यक नपयुक्त तास बहु निर्जरा, थाए Valगुरुजी पास सुणी श्रयो सादरा ॥ १४ ॥आवश्यक करे विशेष सदा शांतातमा, सामायकादिक किvalरिया मुकी तमा ।। सम्यग निर्मल हृदय शुन्न नपयोगें करी, करवा त्रिकरण शुक्ष् मया नद्यम धरी Ram १५ ॥ श्राये सामायिकथी संयम निर्मलो, चोवीसथे होए के समकित नजलो ॥ ज्ञानादिक गुण sa
सगण शक करवा नणी.वंदराने प्रतिप्रतिकरी सदगरुतणी॥ १६ ॥झानादिकथी चकं होये जो कीणी परें, निंदे आतम वली के पागे नसरे ॥ चरणादिक अतिचार टालेवा कारणे, करे कानसग
नेम के धाव पमी गणे ॥ १७ ॥ प्रत्याख्याने शुहि होवे तपनी सही, करे साधु निःउद्मपणे मन Naगह गह। ॥ सावधान सर्वत्र क्रिया नद्यम कीयो, तीर्थकरपद राजऋषि नपार्जियो ॥१॥ षटमासा विधि राजऋषीश्वरकेरमी, की। परीक्षा लक्ष्मी देवीएवमी ॥ सोगमे नपसर्ग घोर बिहामणा, कहे , जिनहर्ष सुजाण हवे सुगजो जणा ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ २० ॥
॥दोहा॥ हवे मीठे वचने करी, देवीरूप निधान ॥ साथे वृंद देवांगना, करती सुंदर गान ॥ १॥ योगी-IN श्वरना चित्तपण, देखी नजे विकार ॥ करजोमीण पर कहे, लक्ष्मी देवी तिवार ॥ २ ॥ हुँ आवी आशा करी, स्वामी करो पसाय ॥ कामानि काया दही, विषयामृतरस पाय ॥३॥ हाव नाव बहुपरें करी, कहे वचन गंजीर ॥ मुनिवरने लागे नहीं, जिम पथ्थरने नीर ॥ ॥ मधुर
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