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स्थान
कय जाए आपद गम के ॥ कु० ॥ १५ ॥ विद्यासाधन करी अनुक्रमे रे, कुमरें कीधो संग्राम के ॥ कु० ॥ नाट्योन्मत्त खेचर जीतियो रे, देखाइयुं नुजबल ताम के ॥ कु० ॥ १६ ॥ विद्याधर श्रेणी तणो रे, नृप अरुणदेव बलवंत के ॥ कु० ॥ सर्वत्र जय श्राए धर्मश्री रे, धर्मे बहुलील लहंत
के ॥ कु० ॥ १७ ॥ सांजली धर्मदेशना अन्यदा रे, दयिता निजमित्रसंघात के ॥ कु ॥ चारणINIमुनि जयंत स्वामी कने रे, आनंद मनमांहि लहंत के ॥ कु० ॥ १७ ॥ तीर्थयात्रा विधिशुं करे रे,
हाथे पूजे जिनराज के॥कुण्॥ धरतुं समकित मनमां सदा रे, न करे प्राणिनो घात के॥कु॥१॥ दिये जे दान सुपात्रने रे, आपे मुनिने बहु मान के ॥ कुण् ॥ण पुण्ये जेम श्री पामियें रे, जिन-Sal Sal हर्ष धरे तसु ध्यान के ॥ कुण् ॥ ३० ॥ सर्वगाथा ॥ १० ॥
॥दोहा॥ - मुनिचरणे लागी करी, समकितसुं व्रत बार ॥शांतिमती देवी सहित, अारियां तिणिवार ॥१॥Sta व सह जिनालय शाश्वतां, अशाश्वतां पण जेह ॥ समकित निर्मल कारणे, देव जुहारे तेह ॥२॥a फल लीधुं साम्राज्य, अरुणदेव गुणवंत ॥ सुविवेकीनी संपदा, धर्मकार्य आवंत ॥३॥ वजवेगने आपियु, श्रेणी ध्वजनुं राज ॥ अरुणदेव खेचरपति, राणीसुं हितकाज ॥४॥ दिव्य विमान चमीर करी, बहु खेचर संघात ॥ नन्नमंडल नृपचालियो, वाजे पवित्रस्वात ॥५॥ ॥ ढाल मीनले पधार्या तुमे साधुजीरे ॥ एदेशी ॥
USTI श्रीमणीमंदिरनगरे आवियो रे, राय नत्सव करे बहु नांत रे॥नगरप्रवेश करावियो रे, मायबाट लही निरांतरे॥ श्री॥१॥विनय करी तातमातनो रे.कांचरण नम्या सविनीतरे ॥ वह सामने पाए पमी रे, कांश वाधी अधिकी प्रीत रे ॥ श्री० ॥ २॥ देखीरे अंगज संपदा रे, कांश मणीशे
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