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नगर मोकार ॥ राजऋषीश्वर गुरुकने जी, अपूर्वनणे श्रुतसार ॥ ध ॥१३॥ अस्वाध्याय दिवानिशी जी, दोन्नन्नणी करे तेह ॥ प्रकरण सूत्र नणे तिहां जी, मुनिवरगुणमणिगेह ॥ध०॥ १॥ दोनावे ते मुनिन्नणी जी, जगतां पामे नंग॥ पण प्रमाद न करे रतिजी, पठन अन्यास अनंग ॥ ध ॥१५॥ प्रमोदवंत नाकी यो जी, प्रत्यक्ष थ मुनि पाय ॥ वंदी कर जोमी करीजी, पूरे
गुरु राय ॥ध ॥ १५ ॥ अपूर्व श्रुत पाठथी जी,शुं फल पामे साध, गुरु नाखे वासव सुणो जी, तीर्थकर कर्म बांध ॥ध ॥ १७ ॥ नमी सुरेश केवलि प्रतेजी, राजऋषि नमि पाय ॥ मान दे
वांदी करी जी, निज थानक सुर जाय ॥ध ॥१॥आराधी अढारमुं जी, स्थानक मुनि नितमेsala ॥ अपूर्व श्रुत नवाथकीजी, विजय विमाने देव ॥ ध० ॥ १७॥ तिहाथी चवि विदेहमें जी,
तीर्थकर पद पामि ॥ सागरचं मुनीश्वरजी, लहेशे मुक्ति विश्राम ॥ २०॥ कार्याहितीय विवेकियें । जी, अपूर्वापूर्व सिांत ॥ सम्यकदृष्टि जे होवे जी, साधु श्रावक गुणवंत ॥ध ॥ १ ॥ श्रुतज्ञानो
पयोगथी जी, सकल कूकर्म विनाश ॥दय पामे तत्कणथकी जी, गुप्ति तृतीय धर तास ॥ son २ ॥ सागरचं नरेंचं जी, सन्निलि चरित्र रतन ॥ अष्टादश थानकविष जी, करो जिनहर्ष NA जतन ॥ २३ ॥ सर्वगाथा ॥२५॥ ॥इतिश्री अष्टादश स्थानके सागरचं राजर्षि कथानकं ॥१७॥
॥दोहा॥ - थानक हवे ओगणीशमुं, सांजलजो सुविचार ॥ सकल श्रेयकारण नणी, निज परने नपकार
॥१॥निखिल श्रीश्रुत शाननो, आश्रय करी विशुद्ध ॥करवीनक्तिनली परें, टाली अविधि अशुभ salu २ ॥ अरिहंत नांखे अर्थथी, सूत्र रचे गणधार ॥ सूत्र कहीजें तेहने, संघनणी नपकार ॥३॥
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