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वीश
॥११॥
| यतः । अथं जासेतीइ अरिहा, सुतं गुती गणहरा निनां ॥ सासणस्स हि श्राइ, तो सुतं पवतहईं ॥ १ ॥ सूत्र रच्यां गणधरतणां, प्रत्येक बुध उत्पन्न ॥ रच्यां सुत्र श्रुत केवली, दशपूर्वेण अभिन्न | ॥ ४ ॥ अंगानंगादिक करी, जेहना नेद अनेक ॥ अंग आचारादि कह्याँ, हियमे धारी विवेक ॥ ५ ॥ बहाबन्ध दें करी, दोय प्रकार अनंग ॥ द्वादशांगी बक्ष तिहां, आागल सुणो सुव्यंग ॥ ६ ॥ महानिशियादिक सहु, कहियें तेह प्रबद्ध || तिहां अंगपदनी हवे, संख्या शुणो विशुद्ध ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ वीरजिणेसरनी ॥ देश ॥
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आचारंग ढार सहस पद संख्या जाणुं, सुगंकांग बत्री सहस पद तेह वखाणुं ॥ सहस बँदुतेर तृतीय अंगांग कहीजें, समवायांगे ऐक लाख चैमाल लहीजें ॥ १ ॥ पंचम अंग दोए लाख नपरे अय्यासी, सहस बँदुतेर पांच लाख ज्ञाता प्रकाशी ॥ लीख इग्यार दुववन्न अंगपद सँत्तम कही यें, अंतर्गड लाख त्रैवी से चौर सांजली गहगहीयं ॥ २ ॥ लाख बेतालीस व अधिक पद नवमे अंगे, बाणुंलाख सहससोलें पद दशमे अंगे ॥ एकादशमे श्रुत विपाक एक कोमी चोरोंसी लाख सहस बैंत्रीश वली नपरे जिननासी ॥ ३ ॥ सर्व अंगनां पद थयां ए सधलां त्रण कोमी, अमस लाख बयाल सहस कर जोमी || हवे पूर्वपदनी कहुं संख्या सांजल जो, एहनी नक्ति करी घणी शिवश्रीने मिल जो ॥ ४ ॥ गज अंबाडी साहीये एक पूर्वक लीखाए, एम बमणा करतां थकां सदु मान गलाए । उत्पाद पूर्व प्रमाण कोमी पद कर जो संख्या, प्रग्रायणीये लाख बनुं पदनी वे संख्या ॥ ५ ॥ वीर्यप्रवादे वर्णव्या ए पद सिँ तेरलाख, अस्त प्रवाद बैंष्ठि पद लख्य ॥११८॥ | प्रजाख ॥ ज्ञानं प्रवादे कोमी एक पद नयां, षटूपद कोमी एक सत्यप्रवाद सलूसा ॥ ६ ॥ कोमी बैवीस कह्यां जिहां ए पद आत्म प्रवाद, लाख ईसी पद कोमी एक पूर्व कर्म प्रवाद ॥ नवसुं प्रत्या
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